Bhadrapada Purnima Vart 2024 नमो नारायण….भाद्रपद मास की पूर्णिमा “भाद्रपद पूर्णिमा” के नाम से जानी जाती है.भाद्रपद पूर्णिमा तिथि के दिन पवित्र नदियों, सरोवरों, तालाबों आदि में स्नान करने के पश्चात जरूरतमंद को दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है.इसके अलावा भाद्रपद पूर्णिमा का एक और महत्व है.! ‘भाद्रपद पूर्णिमा बुधवार 18 सितंबर 2024 को मनाई जाएगी. !
इस पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण की पूजा, शिव पार्वती पूजा, चंद्रमा पूजा कार्य संपन्न होते हैं.इस पूर्णिमा के दिन व्रत का अत्यंत महत्व भी बताया गया जो सभी प्रकार के सुख वैभव को देने में सहायक बनता है.!
पूर्णिमा की तिथि धार्मिक कर्म एवं अनुष्ठान के कार्य करने में अत्यंत शुभ मानी जाती है. इस दिन को मुहूर्त शास्त्र में भी स्थान प्राप्त है. शुभ मुहूर्त का निर्धारण इस तिथि में होता है जिसमें बहुत से नवीन कार्य भी करने कि बात कहीं गई है.!
-:’Bhadrapada Purnima Vart 2024: भाद्रपद पूर्णिमा से आरंभ श्राद्ध कार्य’:-
संपूर्ण वर्ष में आने वाली हर एक पूर्णिमा की तिथि कुछ न कुछ खास विशेषता लिए होती है. इसी में भाद्रपद माह कि पूर्णिमा को श्राद्ध पक्ष के आरंभ से जोड़ा जाता है, इसी पूर्णिमा से आरंभ होने वाले श्राद्ध कार्य आश्विन अमावस्या तक चलते है. इसलिए भाद्रपद पूर्णिमा को स्नान दान का भी विशेष महत्व माना जाता है.!
-:’Bhadrapada Purnima Vart 2024: भाद्रपद पूर्णिमा व्रत पूजा विधि’:-
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन विधि विधान के साथ पूजा और सत्यनारायण कथा करने से सभी दुखों का नाश होता है. जीवन में आने वाले कष्ट दूर हो जाते हैं. भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पूजा करने में कुछ बातों का ध्यान रखने से व्रत का और पूजा का संपूर्ण लाभ भी मिलता है.!
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल उठ कर किसी पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करना चाहिए. अगर ये सब संभव न हो सके तो अपने निवास स्थान अथवा घर पर ही स्नान कर लेना चाहिए.!
-:’Bhadrapada Purnima Vart 2024: भाद्रपद पूर्णिमा का नक्षत्र संबंध’:-
प्रत्येक मास की पूर्णिमा तिथि से ही चंद्र वर्ष के महीनों के नामों को रखे जानी की बात कही जाती है. हिन्दु पंचांग में सूर्य और चंद्रमा से ही महीनों के नाम रखे जाते हैं जिन्हें सौर मास और चंद्र मास के नाम से जाना जाता है. कुछ व्रत व त्यौहार सौर मास से मनाए जाते है, तो कुछ चंद्र मास के द्वारा.!
इसलिए जब हम पूर्णिमा तिथि की बात करते हैं तो उसे चंद्र वर्ष से जोड़ा जाता है. चंद्रमा के साथ ही नक्षत्रों का भी इस के साथ संबंध होता है. मान्यता अनुसार जिस भी माह में पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस भी नक्षत्र में होता है उसी नक्षत्र के नाम अनुसार उस माह का नाम रखे जाने की बात कही गई है. इसलिए बारह महीनों के नाम नक्षत्रों पर आधारित होते हैं. इसी क्रम में भाद्रपद पूर्णिमा का नाम इसीलिये कहा गया क्योंकि इस दिन चंद्रमा उत्तराभाद्रपद या पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में गोचर कर रहा होता है.!
जिन लोगों का जन्म उत्तराभाद्रपद या पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में होता है उन लोगों के लिए भी इस पूर्णिमा का दिन विशेष महत्व रखता है. पूर्णिमा के दिन इन लोगों को अपने नक्षत्र की पूजा करनी चाहिए. भगवान शिव, मां पार्वती, भगवान गणेश तथा अहिर्बुधन्य की पूजा करनी चाहिए. दूध, दहीं, घी, शहद, फूल और मिठाई इत्यादि को भगवान को पूजा में शामिल करना चाहिए. नक्षत्र के मंत्रों का उचारण करना चाहिए. इस पूजा के अतिरिक्त नवग्रहों से संबंधित वस्तुओं का दान भी करना चाहिए. दान की जाने वाली चीजों में गुड़, काले तिल, चावल, गुड़, चीनी, नमक, जौं तथा कंबल इत्यादि को दान स्वरुप देना चाहिए.!
-:’Bhadrapada Purnima Vart 2024:भाद्रपद पूर्णिमा कथा’:-
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन उमा महेश्वर व्रत करने का भी विधान बताया गया है. धर्म शास्त्रों में इस पूर्णिमा के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है. इसके साथ ही रात्रि के समय जागरण करना चाहिए. नारद पुराण और मत्स्य पुराण में इस व्रत के बारे में भी बताया गया है. इस व्रत को करने से मांगलिक सुख मिलते हैं. दांपत्य सुख प्राप्त होता है.!
उमा महेश्वर व्रत के साथ ही कथा भी सुननी चाहिए. इस कथा को सुनने से व्रत का संपूर्ण फल मिलता है. कथा इस प्रकार है:-
ऋषि दुर्वासा जी एक बार भगवान शिव शंकर जी के दर्शन करने उनसे मिलने कैलाश जाते हैं . कैलाश पर भगवान शिव और माता पार्वती के दर्शन कर वह अत्यंत प्रसन्न होते हैं. भगवान शिव, ऋषि दुर्वासा को एक पुष्प माला भेंट करते हैं जिसे दुर्वासा प्रेम से स्वीकार कर लेते हैं.!
भगवान से भेंट कर लेने के पश्चात दुर्वासा वहां से आगे निकल पड़ते हैं. मार्ग में वह भगवान श्री विष्णु जी के दर्शन के लिए भी उत्सुक होते हैं ओर उनसे मिलने के लिए विष्णु लोक जाने के लिए आगे निकल पड़ते हैं लेकिन तभी उनकी भेंट इंद्र से होती है तब दुर्वाजी भगवान शिव द्वारा उन्हें प्रदान कि हुई माला वह इंद्र को भेंट दे देते हैं.!
इंद्र अपने अभिमान में उस माला को अपने वाहन ऎरावत हाथी को पहना देता है. ऋषि दुर्वासा यह सब देखकर क्रोधित हो उठते हैं उन्हें यह कार्य अच्छा नही लगता है और दुर्वासा क्रोधित स्वर में इंद्र को कहते हैं कि तुमने महादेव शिव शंकर जी का अपमान किया है. इससे तुम्हें लक्ष्मी जी छोड़कर चली जायेंगी और तुम्हें इंद्र लोक और अपने सिंहासन को भी त्यागना पड़ेगा.!
यह सुनकर इंद्र जी ने ऋषि दुर्वासा जी के समक्ष हाथ जोड़कर क्षमा याचना करी और इस श्राप से मुक्त होने का उपाय पूछा. इंद्र की विनय सुन कर दुर्वासा जी कुछ शांत हुए और क्रोध शांत होने पर ऋषि दुर्वासा जी ने इंद्र को बताया कि उसे उमा महेश्वर व्रत करना चाहिए. तभी वह अपने स्थान को पुन: प्राप्त हो पाएगा. तब इंद्र ने इस व्रत को किया. उमा महेश्वर व्रत के प्रभाव से लक्ष्मी जी समेत सभी वस्तुएं जो उनसे छिन गई थीं सभी की प्राप्ति होती है.!