Bhimashankar Jyotirlinga: श्रावण विशेषांक, श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

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ॐ सर्वेश्वराय विद्महे, शूलहस्ताय धीमहि.तन्नो रूद्र प्रचोदयात् ||

ॐ नमः शिवाय……भारत देश धार्मिक आस्था और विश्वास का देश है.तथा ईद देश में अनेकानेक धर्मस्थल है.इन धर्मस्थलों “ज्योतिर्लिंगों” को विशेष स्थान प्राप्त हैं,और इन दिव्य द्वादश ज्योतिर्लिंगों की विशेष रुप से पूजा की जाती है.!

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥

श्री भीमशंकर का स्थान मुंबई से पूर्व और पूना से उत्तर भीमा नदी के किनारे सह्याद्रि पर्वत पर है,यह ज्योतिर्लिंग पुणे से लगभग 100 किलोमीटर दूर सह्याद्री की पहाड़ी पर स्थित है,इसे भीमाशंकर भी कहते हैं,यह स्थान नासिक से लगभग 120 मील दूर है.।

श्री भीमशंकर मंदिर की गणना भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में की जाती है.इस ज्योतिर्लिंग के निकट ही भीमा नामक नदी बहती है.इसके अतिरिक्त यहां बहने वाली एक अन्य नदी कृ्ष्णा नदी है. दो पवित्र नदियों के निकट बहने से इस स्थान की महत्वत्ता ओर भी बढ जाती है.!

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है.धर्म पुराणों में भी इस ज्योतिर्लिंग का वर्णन मिलता है.इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से व्यक्ति के समस्त दु:खों से छुटकारा मिलता है.इस मंदिर के विषय में यह मान्यता है,कि जो भक्त श्रद्वा से इस मंदिर के प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद दर्शन करता है,उसके सात जन्मों के पाप दूर होते है.तथा उसके लिए स्वर्ग के मार्ग स्वत: खुल जाते है.भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे जिले में सहाद्रि नामक पर्वत पर स्थित है.पास में ही बहती भीमा नदी इसके सौन्दर्य को बढाती है.महाशिवरात्री या प्रत्येक माह में आने वाली शिवरात्री में यहां पहुंचने के लिए विशेष बसों का प्रबन्ध किया जाता है.इसके अतिरिक्त भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों का एक अन्य पौराणिक मान्यता भी है,कि जो व्यक्ति सुबह स्नान और नित्यकर्म क्रियाओं के बाद प्रात: 12 ज्योतिर्लिगों का नाम जाप भी करता है.उसके सभी पापों का नाश होता है.!

यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे,निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्दं तं,शङ्करं भक्तहितं नमामि॥

“भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग”
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का नाम भीमा शंकर किस कारण से पडा इस पर एक पौराणिक कथा प्रचलित है.कथा महाभारत काल की है.महाभारत का युद्ध पांडवों और कौरवों के मध्य हुआ था.इस युद्ध ने भारत मे बडे महान वीरों की क्षति हुई थी. दोनों ही पक्षों से अनेक महावीरों और सैनिकों को युद्ध में अपनी जान देनी पडी थी.!
इस युद्ध में शामिल होने वाले दोनों पक्षों को गुरु द्रोणाचार्य से प्रशिक्षण प्राप्त हुआ था.कौरवों और पांडवों ने जिस स्थान पर दोनों को प्रशिक्षण देने का कार्य किया था.वह स्थान है. आज उज्जनक के नाम से जाना जाता है.यहीं पर आज भगवान महादेव का भीमशंकर विशाल ज्योतिर्लिंग है.कुछ लोग इस मंदिर को भीमाशंकर ज्योतिर्लिग भी कहते है.!

“भीमशंकर ज्योतिर्लिंग कथा”
भीमशंकर ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिवपुराण में मिलता है.शिवपुराण में कहा गया है,कि पुराने समय में भीम नाम का एक राक्षस था.वह राक्षस कुंभकर्ण का पुत्र था.परन्तु उसका जन्म ठिक उसके पिता की मृ्त्यु के बाद हुआ था.अपनी पिता की मृ्त्यु भगवान राम के हाथों होने की घटना की उसे जानकारी नहीं थी. समय बीतने के साथ जब उसे अपनी माता से इस घटना की जानकारी हुई तो वह श्री भगवान राम का वध करने के लिए आतुर हो गया.अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसने अनेक वर्षों तक कठोर तपस्या की. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे ब्रह्मा जी ने विजयी होने का वरदान दिया. वरदान पाने के बाद राक्षस निरंकुश हो गया.उससे मनुष्यों के साथ साथ देवी देवताओ भी भयभीत रहने लगे;धीरे-धीरे सभी जगह उसके आंतक की चर्चा होने लगी. युद्ध में उसने देवताओं को भी परास्त करना प्रारम्भ कर दिया.जहां वह जाता मृ्त्यु का तांडव होने लगता. उसने सभी और पूजा पाठ बन्द करवा दिए. अत्यन्त परेशान होने के बाद सभी देव भगवान शिव की शरण में गए;भगवान शिव ने सभी को आश्वासन दिलाया की वे इस का उपाय निकालेगें. भगवान शिव ने राक्षस को नष्ट कर दिया. भगवान शिव से सभी देवों ने आग्रह किया कि वे इसी स्थान पर शिवलिंग रुप में विराजित हो़.उनकी इस प्रार्थना को भगवान शिव ने स्वीकार किया. और वे भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रुप में आज भी यहां विराजित है.I

-:”शिव पंचाक्षर स्तोत्र”:-
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय|
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे “न” काराय नमः शिवायः॥
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय|
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे “म” काराय नमः शिवायः॥
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय|
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै “शि” काराय नमः शिवायः॥
वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय|
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै “व” काराय नमः शिवायः॥
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय|
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै “य” काराय नमः शिवायः॥
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत शिव सन्निधौ|
शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

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