नमो नारायण.. 12 नवंबर,रविवार को दीपावली है,इस दिन श्रीमहालक्ष्मी एवं भगवान श्रीगणेश की पूजा की जाती है,इस वर्ष दीपावली पूजन शष, राज, बुधादित्य, आयुष्मान आदि योगों के सानिध्य में सुसम्पन्न किया जायेगा,इन योगों में की गई लक्ष्मी पूजा से हर प्रकार के सुखों की प्राप्ति संभव है,यह योग धन लाभ के लिए भी बहुत शुभ माने गए हैं,महालक्ष्मी पूजन निम्न विधि से करें..I
दीपावली पूजा के लिए मां लक्ष्मी की चौकी एवम अपना पूजन स्थल अथवा मंदिर को साफ रखें एवम सुन्दर तरह से सजायें,चौकी पर लक्ष्मीजी व गणेशजी की मूर्तियों को स्थापित करें,कलश को लक्ष्मीजी के पास चावल पर रखें,नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटे कि नारियल का आगे का भाग दिखाई दे और इसे कलश के ऊपर रख दें,यह कलश वरुणदेव का प्रतीक होता है,अब दो बड़े दीपक स्थापित करें,एक घी व दूसरे में तेल का दीपक प्रज्वलित करें,एक दीपक चौकी के दाहिनी ओर रखें एवं दूसरा मूर्तियों के चरणों के समीप रखें.।
पूजा की थाली के संबंध में शास्त्रों में उल्लेख किया गया है कि लक्ष्मी पूजन में तीन थालियां सजानी चाहिए,पहली थाली में 11 दीपक समान दूरी पर रखें कर सजाएं,दूसरी थाली में पूजन सामग्री इस क्रम से सजाएं- सबसे पहले धानी (खील), बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चंदन का लेप, सिंदूर कुंकुम, सुपारी और थाली के बीच में पान रखें,तीसरी थाली में इस क्रम में सामग्री सजाएं- सबसे पहले फूल, दूर्वा,चावल,लौंग,इलाइची,केसर-कपूर,सुगंधित पदार्थ,धूप,अगरबत्ती,इस तरह थाली सजा कर लक्ष्मी पूजन करें।
-:”श्री लक्ष्मी एवम श्रीगणेश पूजन विधि”:-
पूजा के दिन घर को स्वच्छ कर पूजा-स्थान को भी पवित्र कर लें एवं स्वयं भी स्नान आदि कर श्रद्धा-भक्तिपूर्वक शाम के समय शुभ मुहूर्त में महालक्ष्मी व भगवान श्रीगणेश की पूजा करें,दीपावली पूजन के लिए किसी चौकी अथवा कपड़े के पवित्र आसन पर गणेशजी के दाहिने भाग में माता महालक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें.!
श्रीमहालक्ष्मीजी की मूर्ति के पास ही एक साफ बर्तन में केसर युक्त चंदन से अष्टदल कमल बनाकर उस पर कुछ रुपए रखें तथा एक साथ ही दोनों की पूजा करें,सबसे पहले पूर्व या उत्तर की मुंह करके अपने ऊपर तथा पूजा-सामग्री पर निम्न मंत्र पढ़कर जल छिड़कें.I
ऊं अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।।
उसके बाद जल-चावल लेकर पूजा का संकल्प करें-
संकल्प- ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावास्यायां तिथौ वासरे (वार बोलें) गोत्रोत्पन्न: (गोत्र बोलें)/ गुप्तोहंश्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिकवाचिकमानसिक सकलपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये,तदड्त्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये।
ऐसा कहकर संकल्प का जल छोड़ दें,पूजा से पहले नई प्रतिमा की इस विधि से प्राण-प्रतिष्ठा करें-
प्रतिष्ठा- बाएं हाथ में चावल लेकर इस मंत्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन चावलों को प्रतिमा पर छोड़ते जाएं-
ऊं मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयन्तामोम्प्रतिष्ठ।।
ऊं अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च,अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन।।
सर्वप्रथम भगवान श्रीगणेश की पूजा करें,इसके बाद कलश पूजन तथा षोडशमातृका (सोलह देवियों का) पूजन करें,इसके बाद प्रधान पूजा में मंत्रों द्वारा भगवती महालक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करें।
ऊं महालक्ष्म्यै नम:- इस नाम मंत्र से भी पूजा की जा सकती है।
प्रार्थना- विधिपूर्वक श्रीमहालक्ष्मी का पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-
सुरासुरेंद्रादिकिरीटमौक्तिकै-
र्युक्तं सदा यक्तव पादपकंजम्।
परावरं पातु वरं सुमंगल
नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये।।
भवानि त्वं महालक्ष्मी: सर्वकामप्रदायिनी।।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि नमोस्तु ते।।
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात्।।
ऊं महालक्ष्म्यै नम:, प्रार्थनापूर्वकं समस्कारान् समर्पयामि।
प्रार्थना करते हुए प्रणाम करें।
समर्पण- पूजा के अंत में कृतोनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम्, न मम,यह बोलकर सभी पूजन कर्म भगवती महालक्ष्मी को समर्पित करें तथा जल छोड़ें।
इस पूजन के बाद देहलीविनायक (श्रीगणेश),कलम,माता सरस्वती, भगवान कुबेर, तराजू तथा दीपकों की पूजा की जाती है..I
देहलीविनायक,दवात व कलम की पूजा विधि
देहलीविनायक पूजन
दुकान या ऑफिस में दीवारों पर ऊं श्रीगणेशाय नम:, स्वस्तिक चिह्न, शुभ-लाभ सिंदूर से लिखे जाते हैं। इन्हीं शब्दों पर ऊं देहलीविनायकाय नम: इस नाममंत्र द्वारा गंध-पुष्पादि से पूजा करें।
श्रीमहाकाली (दवात) पूजन
स्याहीयुक्त दवात (स्याही की बोतल) को महालक्ष्मी के सामने फूल तथा चावल के ऊपर रखकर उस पर सिंदूर से स्वस्तिक बना दें तथा मौली लपेट दें।
ऊं श्रीमहाकाल्यै नम:
इस नाम मंत्र से गंध-फूल आदि पंचोपचारों से या षोडशोपचारों से दवात तथा भगवती महाकाली की पूजा करें और अंत में इस प्रकार प्रार्थना पूर्वक प्रणाम करें..I
कालिके त्वं जगन्मातर्मसिरूपेण वर्तसे।
उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये।।
या कालिका रोगहरा सुवन्द्या भक्तै: समस्तैव्र्यवहारदक्षै:।
जनैर्जनानां भयहारिणी च सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु।।
लेखनी पूजन
लेखनी (कलम) पर मौली बांधकर सामने रख लें और लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना।
लोकानां च हितार्थय तस्मात्तां पूज्याम्यहम्।।
ऊं लेखनीस्थायै देव्यै नम:
इस नाममंत्र द्वारा गंध, फूल, चावल आदि से पूजा कर इस प्रकार प्रार्थना करें-
शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्युयाद्यात:।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव।।
देहलीविनायक, दवात व कलम की पूजा करने के बाद बहीखाता, कुबेर पूजन तथा तुला (तराजू) का पूजन किया जाता है..I
बहीखाता पूजन
बहीखाता पर रोली या केसर युक्त चंदन से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं एवं थैली में पांच हल्दी की गांठें, धनिया, कमलगट्टा, चावल, दूर्वा और कुछ रुपए रखकर उससे सरस्वती का पूजन करें.सर्वप्रथम सरस्वती का ध्यान इस प्रकार करें-
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा।।
ऊं वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नम:
इसके बाद गंध, फूल, चावल आदि अर्पित कर पूजा करें।
कुबेर पूजन
तिजोरी अथवा रुपए रखे जाने वाले संदूक के ऊपर स्वस्तिक का चिह्न बनाएं और फिर भगवान कुबेर का आह्वान करें-
आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु।
कोशं वद्र्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।।
आह्वान के बाद ऊं कुबेराय नम: इस नाम मंत्र से गंध, फूल आदि से पूजन कर अंत में इस प्रकार प्रार्थना करें-
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भगवान् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पद:।।
इस प्रकार प्रार्थना कर हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, रुपए, दूर्वादि से युक्त थैली तिजोरी मे रखें।
तुला (तराजू) पूजन
सिंदूर से तराजू पर स्वस्तिक बना लें,मौली लपेटकर तुला देवता का इस प्रकार ध्यान करें-
नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता।
साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना।।
ध्यान के बादऊं तुलाधिष्ठातृदेवतायै नम:
इस नाम मंत्र से गंध, चावल आदि उपचारों द्वारा पूजन कर नमस्कार करें।
दीपमालिका (दीपक) पूजन
एक थाली में 11, 21 या उससे अधिक दीपक जलाकर महालक्ष्मी के समीप रखकर उस दीपज्योति का ऊं दीपावल्यै नम:इस नाम मंत्र से गंधादि उपचारों द्वारा पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें-
त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चनद्रो विद्युदग्निश्च तारका:।
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नम:।।
दीपकों की पूजा कर फल,बतासा,धान इत्यादि पदार्थ चढ़ाएं,धान का लावा (खील) गणेश, महालक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी-देवताओं को भी अर्पित करें..I
“इस प्रकार करें मां लक्ष्मी की आरती”
आरती के लिए एक थाली में स्वस्तिक आदि मांगलिक चिह्न बनाकर चावल तथा फूलों के आसन पर शुद्ध घी का दीपक जलाएं। एक अलग थाली में कर्पूर रख कर पूजन स्थान पर रख लें। आरती की थाली में ही एक कलश में जल लेकर स्वयं पर छिड़क लें,पुन: आसन पर खड़े होकर अन्य पारिवारजनों के साथ घंटी बजाते हुए महालक्ष्मीजी की आरती करें-
ऊं जय लक्ष्मी माता, जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसिदिन सेवत हर विष्णु-धाता।। ऊं।।
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता।। ऊं…।।
दुर्गारूप निरंजनि, सुख-सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, रिद्धि-सिद्धि धन पाता।। ऊं…।।
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधिकी त्राता।। ऊं…।।
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता।
सब संभव हो जाता, मन नहिं घबराता।। ऊं…।।
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।
खान-पान का वैभव सब तुमसे आता।। ऊं…।।
शुभ-गुण-मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता।। ऊं…।।
महालक्ष्मी(जी) की आरती, जो कोई नर गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता।। ऊं…।।
मंत्र पुष्पांजलि- दोनों हाथों में कमल आदि के फूल लेकर हाथ जोड़ें और यह मंत्र बोलें-
ऊं या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:
पापात्मनां कृतधियां ह्रदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्।।
ऊं श्रीमहालक्ष्म्यै नम:, मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयमि।
ऐसा कहकर हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें। प्रदक्षिणा कर प्रणाम करें, पुन: हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करें-
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि।।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।
सरजिजनिलये सरोजहस्ते धनलतरांशुकगंधमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्वभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।
पुन: प्रणाम करके ऊं अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्रीमहालक्ष्मी: प्रसीदतु।
यह कहकर जल छोड़ दें। ब्राह्मण एवं गुरुजनों को प्रणाम कर चरणामृत तथा प्रसाद वितरण करें।
विसर्जन- इसके बाद चावल लेकर श्रीगणेश व महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी आवाहित, प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओं पर चावल छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जित करें-
यान्तु देवगणा: सर्वे पूजामादाय मामकीम्।
इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनरागमनाय च।।
इस तरह दीपावली पूजन संपन्न करें।
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