जय श्रीकृष्णा…..भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को ‘हल षष्ठी’/चन्दन षष्टी का पर्व मनाया जाता है,इस वर्ष यह पर्व 05 सितम्बर 2023 को मनाया जाएगा,धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान ‘शेषनाग’ द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में धरती पर अवतरित हुए थे, बलराम जी का प्रधान शस्त्र ‘हल’ व ‘मूसल’ है,इसी कारण इन्हें ‘हलधर’ भी कहा गया है,उन्हीं के नाम पर इस पर्व का नाम ‘हल षष्ठी’पड़ा,यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित एक प्रमुख व्रत है, ‘हल षष्ठी’ के दिन मथुरामण्डल और भारत के समस्त बलदेव मन्दिरों में भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई और ब्रज के राजा बलराम का जन्मोत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाता है,इस दिन गाय का दूध व दही का सेवन वर्जित माना गया है,इस दिन व्रत करने का विधान भी है,हल षष्ठी व्रत पूजन के अंत में हल षष्ठी व्रत की छ: कथाओं को सुनकर आरती आदि से पूजन की प्रक्रियाओं को पूरा किया जाता है.!
-:’हल षष्ठी’ संतान दीर्घायु व्रत:-
‘हल षष्ठी’ के दिन भगवान शिव,पार्वती,गणेश,कार्तिकेय,नंदी और सिंह आदि की पूजाका विशेष महत्व बताया गया है,इस प्रकार विधिपूर्वक ‘हल षष्ठी’ व्रत का पूजन करने से जो संतान हीन हैं,उनको दीर्घायु और श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है,इस व्रत एवं पूजन से संतान की आयु,आरोग्य एवं ऐश्वर्य में वृद्धि होती है,विद्वानों के अनुसार सबसे पहले द्वापर युग में माता देवकी द्वारा ‘कमर छठ’ व्रत किया गया था,क्योंकि खुद को बचाने के लिए मथुरा का राजा कंस उनके सभी संतानों का वध करता जा रहा था, उसे देखते हुए देवर्षि नारद ने ‘हल षष्ठी’ का व्रत करने की सलाह माता देवकी को दी थी,उनके द्वारा किए गए व्रत के प्रभाव से ही बलदाऊ और भगवान कृष्ण कंस पर विजय प्राप्त करने में सफल हुए थे, उसके बाद से यह व्रत हर माताअपनी संतान की खुशहाली और सुख-शांति की कामना के लिए करती है.इस व्रत को करने से संतान को सुखी व सुदीर्घ जीवन प्राप्त होता है.’कमर छठ’ पर रखे जाने वाले व्रत में माताएँ विशेष तौर पर पस हर चावल का उपयोग करती हैं.!
-:हलधर जन्मोत्सव दाऊजी {बलदेव} मन्दिर:-
कानों में कुण्डल,गले में वैजयंती माला है,विग्रह के चरणों में सुषल तोष व श्रीदामा आदि सखाओं की मूर्तियाँ हैं,ब्रजमण्डल के प्रमुख देवालयों में स्थापित विग्रहों में बल्देव जी का विग्रह अति प्राचीन माना जाता है.यहाँ पर इतना बड़ा तथा आकर्षक विग्रह वैष्णव विग्रहों में दिखाई नहीं देता है.बताया जाता है कि गोकुल में श्रीमद बल्लभाचार्य महाप्रभु के पौत्र गोस्वामी गोकुलनाथ को बल्देव जी ने स्वप्न दिया कि श्याम गाय जिस स्थान पर प्रतिदिन दूध स्त्रावित कर जाती है,उस स्थान पर भूमि में उनकी प्रतिमा दबी हुई है,उन्होंने भूमि की खुदाई कराकर श्री विग्रह को निकाला तथा ‘क्षीरसागर’ का निर्माण हुआ.गोस्वामी जी ने विग्रह को कल्याण देवजी को पूजा-अर्चना के लिये सौंप दिया तथा मन्दिर का निर्माण कराया,उस दिन से आज तक कल्याण देव के वंशज ही मन्दिर में सेवा-पूजा करते हैं.!
-:’हल षष्ठी’ व्रत विधि:-
व्रती को प्रात:काल स्नान आदि से निवृत्त हो जाना चाहिए,इसके पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण कर गाय का गोबर लाएँ,गोबर से पृथ्वी को लीपकर एक छोटा-सा तालाब बनाना चाहिए,तालाब में झरबेरी,ताश तथा पलाश वृक्ष की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई ‘हरछठ’ को गाड़ दें,बाद में इसकी पूजा करें….!
पूजा में सतनाजा (चना,जौ,गेहूँ,धान,अरहर,मक्का तथा मूँग) चढ़ाने के बाद धूल,हरी कजरियाँ, होली की राख,होली पर भुने हुए चने के होरहा तथा जौ की बालें चढ़ाएँ,हरछठ के समीप ही कोई आभूषण तथा हल्दी से रंगा कपड़ा भी रखें,पूजन करने के बाद भैंस के दूध से बने मक्खन द्वारा हवन करना चाहिए और पश्चात इसके कथा कहें अथवा सुनें.!
-:हल षष्ठी व्रत कथा:–
प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी,उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था,एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था,उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा,यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई,वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया,वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई.!
संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी,गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया,उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था,उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था,अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया,इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ,फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया,उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया,कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची,बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है,वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती.!
अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिए,ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची,जहां उसने दूध-दही बेचा था,वह गली-गलीघूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी,तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया,बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है,तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया.!
-:प्रार्थना मंत्र’:-
गंगाद्वारे कुशावर्ते विल्वके नीलेपर्वते।
स्नात्वा कनखले देवि हरं लब्धवती पतिम्॥
ललिते सुभगे देवि-सुखसौभाग्य दायिनि।
अनन्तं देहि सौभाग्यं मह्यं, तुभ्यं नमो नमः॥
अर्थात “हे देवी..! आपने गंगाद्वार,कुशावर्त विल्वक,नील पर्वत और कनखल तीर्थ में स्नान करके भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त किया है,सुख और सौभाग्य देने वाली ललिता देवी आपको बारम्बार नमस्कार है,आप मुझे अचल सुहाग दीजिए।”
-:हल षष्ठी विशेषता’:-
01.इस दिन महुए की दातुन करने का विधान है.!
02.हल षष्ठी के दिन हल की पूजा का विशेष महत्व है.!
03.यह व्रत पुत्रवती स्त्रियों को विशेष तौर पर करना चाहिए.!
04.इस दिन गाय के दूध व दही का सेवन करना वर्जित माना गया है.।
05.इस तिथि पर हल जुता हुआ अन्न तथा फल खाने का विशेष माहात्म्य है.!
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