Happy Ghee Sankranti: नमो नारायण… गुरुवार 17अगस्त 2023 को भाद्रपद संक्रांति के शुभ अवसर पर सूर्य नारायण मध्याहन 13 बजकर 32 मिनट पर सिंह राशि में प्रवेश करेंगे.भाद्रपद संक्रान्ति गुरुवार को प्रात:काल 05:55 मिनट पर आरंभ होगी.भाद्रपद संक्रांति का पुण्य काल सूर्यास्त तक रहेगा,भाद्रपद संक्रान्ति को उत्तराखंड में “घी त्यार”के रूप में मनाया जाता है.!
“उत्तराखंड में “घी त्यार” क्यों मनाया जाता है…?”
–:उत्तराखण्ड में हिन्दी मास (महीने) की प्रत्येक 01 गते यानी संक्रान्ति को लोक पर्व के रुप में मनाने का प्रचलन रहा है…!
-:उत्तराखंड में यूं तो प्रत्येक महीने की संक्रांति को कोई त्योहार मनाया जाता है…!
–:भाद्रपद (भादो)महीने की संक्रांति जिसे सिंह संक्रांति भी कहते हैं..!
–:इस दिन सूर्य “सिंह राशि” में प्रवेश करता है और इसलिए इसे सिंह संक्रांति भी कहते हैं..!
–:उत्तराखंड में भाद्रपद संक्रांति को ही घी संक्रांति के रूप में मनाया जाता है..!
–:यह त्यौहार भी हरेले की ही तरह ऋतु आधारित त्यौहार है,हरेला जिस तरह बीज को बोने और वर्षा ऋतू के आने के प्रतीक का त्यौहार है,वही “घी त्यार” अंकुरित हो चुकी फसल में बालिया के लग जाने पर मनाये जाने वाला त्यौहार है..!
यह खेती बाड़ी और पशु के पालन से जुड़ा हुआ एक ऐसा लोक पर्व है,जो की जब बरसात के मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में बालियाँ आने लगती हैं,तो किसान अच्छी फसलों की कामना करते हुए ख़ुशी मनाते हैं,फसलो में लगी बालियों को किसान अपने घर के मुख्य दरवाज़े के ऊपर या दोनों और गोबर से चिपकाते है,इस त्यौहार के समय पूर्व में बोई गई फसलों पर बालियां लहलहाना शुरु कर देती हैं,साथ ही स्थानीय फलों,तथा अखरोट आदि के फल भी तैयार होने शुरु हो जाते हैं,पूर्वजो के अनुसार मान्यता है कि अखरोट का फल घी-त्यार के बाद ही खाया जाता है,इसी वजह से घी तयार मनाया जाता है..!
-:’उत्तराखंड में “घी त्यार” का महत्व’:-
उत्तराखंड में घी त्यार किसानो के लिए अत्यंत महत्व रखता है,और आज ही के दिन उत्तराखंड में गढ़वाली,कुमाउनी सभ्यता के लोग घी को खाना जरुरी मानते है,क्युकी घी को जरुरी खाना इसलिए माना जाता है क्युकी इसके पीछे एक डर भी छिपा हुआ है,वो डर है घनेल {घोंगा{ “Snail” का,पहाड़ों में यह बात मानी जाती है कि जो घी संक्रांति के दिन जो व्यक्ति घी का सेवन नहीं करता वह अगले जन्म में घनेल {घोंघा} “Snail” बनता है,इसलिए इसी वजह से है कि नवजात बच्चों के सिर और पांव के तलुवों में भी घी लगाया जाता है…!
यहां तक उसकी जीभ में थोड़ा सा घी रखा जाता है,इस दिन हर परिवार के सदस्य जरूर घी का सेवन करते है,जिसके घर में दुधारू पशु नहीं होते गांव वाले उनके यहां दूध और घी पहुंचाते हैं,बरसात में मौसम में पशुओं को खूब हरी घास मिलती है,जिससे की दूध में बढ़ोतरी होने से दही -मक्खन -घी की भी प्रचुर मात्रा मिलती है,इस दिन का मुख्य व्यंजन बेडू की रोटी है'{जो उरद की दाल भिगो कर,पीस कर बनाई गई पिट्ठी से भरवाँ रोटी बनती है} और घी में डुबोकर खाई जाती है,अरबी के बिना खिले पत्ते जिन्हें गाबा कहते हैं,उसकी सब्जी बनती है..!
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