Kajari Teej: कज्जली तीज,सुहागिनों का प्रिय त्योहार

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

Kajari Teej: कज्जली तीज,सुहागिनों का प्रिय त्योहार
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Kajari Teej: ॐ नमः शिवाय…..भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी/कज्जली तीज का त्योहार मनाया जाता है,वर्ष 2023 में यह त्यौहार शनिवार 02 सितम्बर को हैं,विशेष रूप से इस अवसर पर सुहागिनें कजरी खेलने अपने मायके जाती हैं,कजरी तीज से एक दिन पूर्व यानि भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वितीया को ‘रतजगा’ अर्थात जागरण किया जाता है,महिलाएं रात भर कजरी खेलती तथा गाती हैं,कजरी खेलना और कजरी गाना दोनों अलग बातें हैं,कजरी गीतों में जीवन के विविध पहलुओं का समावेश होता है,इसमें प्रेम,मिलन,विरह,सुख-दु:ख,समाज की कुरीतियों,विसंगतियों से लेकर जन जागरण के स्वर गुंजित होते हैं.!

-:’Kajari Teej: कजरी तीज स्वरूप’:-

कजरी तीज से कुछ दिन पूर्व सुहागिन महिलाएं नदी-तालाब आदि से मिट्टी लाकर उसका पिंड अर्थात गोला बनाती हैं और उसमें जौ के दाने बोती हैं,रोज इसमें पानी डालने से पौधे निकल आते हैं,इन पौधों को कजरी वाले दिन लड़कियां अपने भाई तथा बुजुर्गों के कान पर रखकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करती हैं,इस प्रक्रिया को ‘जरई खोंसना’ कहते हैं.!
कजरी का यह स्वरुप केवल ग्रामीण इलाकों तक सीमित है,यह खेल गायन करते हुए किया जाता है, जो देखने और सुनने में अत्यन्त मनोरम लगता है,कजरी-गायन की परंपरा बहुत ही प्राचीन है,सूरदास, प्रेमधन आदि कवियों ने भी कजरी के मनोहर गीत रचे थे,जो आज भी गाए जाते हैं.!

कजरी तीज को सतवा व सातुड़ी तीज भी कहते हैं,यह माहेश्वरी समाज का विशेष पर्व है जिसमें जौ, गेहूं,चावल और चने के सत्तू में घी,मीठा और मेवा डाल कर पकवान बनाते हैं और चंद्रोदय होने पर उसी का भोजन करते हैं.!

-:’Kajari Teej: कजरी तीज महत्त्व’:-

भारतीय संस्कृति मे त्यौहार का विशेष महत्त्व है.सुख,सौभाग्य और पराक्रम का बोध कराने वाले त्यौहारों का हिन्दू जन मानस मे हमेशा स्वागत किया जाता है.विशेषकर महिलाओं में गजब का उत्साह दिखाई पड़ता है.ऐसा ही महिलाओं का एक अति विशेष त्यौहार है ‘कजरी/कज्जली तीज’.!

यह व्रत भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाने की परम्परा है,शास्त्रों में कहा जाता है कि अखण्ड सुहाग के लिए इस दिन शिव-पार्वती का विशेष पूजन होता है.शास्त्रों मे इसके लिये विधवा-सधवा सभी को व्रत रहने की सम्पूर्ण छूट है.!

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