जय नारायण .. 15 जनवरी के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते है.इस पर्व को दक्षिण भारत में तमिल वर्ष की शुरूआत इसी दिन से होती है. वहाँ यह पर्व ‘थई पोंगल’ के नाम से जाना जाता है. सिंधी लोग इस पर्व को ‘तिरमौरी’ कहते है. उत्तर भारत में यह पर्व ‘मकर सक्रान्ति के नाम से और गुजरात में ‘उत्तरायण’ नाम से जाना जाता है. इसके अन्य नाम इस प्रकार है.!
भगवान सूर्य नारायण बारह राशियों के भ्रमण करते हुए जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है,इसे ही सरकात,लोहड़ा,टहरी,पोंगल आदि नामों से जानते हैं,मकर राशि के सूर्य होने पर तिल खाना शुभ होता है,बिभिन्न पंचागों के अनुसार शुक्रवार 15 जनवरी की दोपहर में सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर रहे हैं तो कुछ में रात में पंचांग दिवाकर,मार्तण्ड पंचांग तथा कुछ अन्य पंचांगों के अनुसार 14 जनवरी की दोपहर 14 बजकर 29 मिनट {02.29PM} पर सूर्य नारायण मकर राशि में प्रवेश कर रहे हैं और पुण्यकाल शनिवार को सूर्योदय से ही प्रारम्भ हो जायेगा,जबकि अन्नपूर्णा पंचाग सहित कई अन्य पंचांगों के अनुसार 15 जनवरी की रात्रि 20 बजकर 18 मिनट {08.18PM} बजे सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे,पंचांगकार ग्रंथिय प्रमाण के आधार पर संक्रांति प्रवेश काल से 08 या 16 घंटा पहले या बाद पुण्यकाल होता है.!
-:’मकर संक्रान्ति-अनेकानेक नाम’:-
मकर संक्रान्ति को पंजाब में लोहडी पर्व , उतराखंड में उतरायणी, गुजरात में उत्तरायण, केरल में पोंगल, गढवाल में खिचडी संक्रान्ति के नाम से मनाया जाता है.!
-:’मकर संक्रान्ति से जुडी मान्यताएं’:-
एक मान्यता के अनुसार आज के दिन शिवजी ने अपने साधको पर विशेष रुप से ऋषियों पर कृ्पा की थी. एक अन्य मत के अनुसार इस दिन शिव ने विष्णु जी को आत्मज्ञान का दान दिया था.!
देवतों के दिनों की गणना इस दिन से ही प्रारम्भ होती है. सूर्य जब दक्षिणायन में रहते है तो उस अवधि को देवताओं की रात्री व उतरायन के 6 माह को दिन कहा जाता है. मनुष्य के छ: माह के बराबर देवताओं की एक दिन व एक रात्रि होती है.
इसके अतिरिक कहा जाता है कि सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने उसके घर जाते है. सूर्य- शनि का यह मिलाप “मकर संक्रान्ति के रुप में मनाया जाता है.
इस मान्यता से सभी अवगत होगें, कि महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का दिन ही चुना था.
कहा जाता है कि आज ही के दिन गंगा जी ने भगीरथ के पीछे- पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी. इसीलिये आज के दिन गंगा स्नान व तीर्थ स्थलों पर स्नान दान का विशेष महत्व माना गया है.
-:’मकर संक्रान्ति नव जीवन का प्रतीक,प्राणियों में चेतना का जन्म’:-
मकर संक्रान्ति के दिन से मौसम में बदलाव आना आरम्भ होता है. यही कारण है कि रातें छोटी व दिन बडे होने लगते है. सूर्य के उतरी गोलार्ध की ओर जाने बढने के कारण ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ होता है. सूर्य के प्रकाश में गर्मी और तपन बढने लगती है. इसके फलस्वरुप प्राणियों में चेतना और कार्यशक्ति का विकास होता है. जो जीव – जन्तु अभी तक अपने घरों, बिलों या गुफाओं में मौसम के सर्द होने के कारण छुपे हुए थे, वे बाहर निकलने लगते है. प्रकृति में रंग और खुशबू बिगरने लगती है.!
-:’मकर संक्रान्ति तिल की विशेषता’:-
मकर संक्रान्ति के दिन खाई जाने वाली वस्तुओं में जी भर कर तिलों का प्रयोग किया जाता है. तिल से बने व्यंजनों की खुशबू मकर संक्रान्ति के दिन हर घर से आती महसूस की जा सकती है. इस दिन तिल का सेवन और साथ ही दान करना शुभ होता है. तिल का उबटन, तिल के तेल का प्रयोग, तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल मिश्रित जल का पान, तिल- हवन, तिल की वस्तुओ का सेवन व दान, इनमें से कुछ भी करना व्यक्ति के पापों में कमी और पुन्यों में वृ्द्धि करता है.!
तिल अर्थात शनि की कारक वस्तु व गुड अर्थात सूर्य कि कारक वस्तु दोनों की वस्तुओं का दान अपार शुभता है. इन वस्तुओं को एक दूसरे को देने से आपस में मधुरता का, स्नेह व सहयोग भाव की प्रेमवृ्द्धि होती है. मकर संक्रान्ति जैसे त्यौहार समाज को एक -दूसरे से बांधे रखते है.!
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