जय नारायण .. पुत्रदा एकादशी व्रत वर्ष 2024 में पुत्रदा एकादशी व्रत 21 जनवरी को मनाया जाएगा. हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष पुत्रदा एकादशी का व्रत पौष माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है. इस दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है. सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पश्चात श्रीहरि का ध्यान करना चाहिए.!
-:’पुत्रदा एकादशी पूजन’:-
पुत्रदा एकादशी के दिन बाल गोपाल की पूजा करनी चाहिए, बाल गोपाल की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराना चाहिए. धूप-दीप आदि से भगवान नारायण की अर्चना की जाती है, उसके बाद फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि व्यक्ति अपनी सामर्थ्य अनुसार भगवान नारायण को अर्पित करते हैं. पूरे दिन निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनने के पश्चात फलाहार किया जाता है. इस दिन दीप दान करने का महत्व है.!
-:’पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा’:-
प्राचीन काल में भद्रावतीपुरी नगर में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे. परंतु कई वर्ष बीत जाने पर भी उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं हुई. राजा और उसकी रानी दोनों इस बात को लेकर चिन्ताग्रस्त रहते थे. निसंतान होने के दुख से वह शोकाकुल रहने लगे. राजा के पितर भी यह सोचकर चिन्ताग्रस्त थे कि राजा का वंश आगे न चलने पर उन्हें तर्पण कौन करेगा औन उनका पिण्ड दान करेगा.!
राजा भी इसी चिन्ता से अधिक दु:खी थे कि उनके मरने के बद उन्हें कौन अग्नि देगा. एक दिन इसी चिन्ता से ग्रस्त राजा सुकेतुमान अपने घोडे पर सवार होकर वन की ओर चल दिए. वन में चलते हुए वह अत्यन्त घने वन में पहुँच गए.!
चलते-चलते राजा को बहुत प्यास लगने लगी. वह पानी की तलाश में वन में और अंदर की ओर चले गए जहाँ उन्हें एक सरोवर दिखाई दिया. राजा ने देखा कि सरोवर के पास ऋषियों के आश्रम भी बने हुए है और बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे हैं. राजा अपने घोडे़ से उतरा उसने सरोवर से पानी पीया. प्यास बुझाकर राजा ने सभी मुनियों को प्रणाम किया.!
ऋषियों ने राजा को आशीर्वाद दिया और बोले कि राजन हम आपसे प्रसन्न हैं. तब राजा ने ऋषियों से उनके एकत्रित होने का कारण पूछा. मुनि ने कहा कि वह विश्वेदेव हैं और सरोवर के निकट स्नान के लिए आये हैं. आज से पाँचवें दिन माघ मास का स्नान आरम्भ हो जाएगा और आज पुत्रदा एकादशी है. जो मनुष्य इस दिन व्रत करता है उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है.!
राजा ने मुनि के कहे अनुसार पुत्रदा एकादशी का व्रत आरंभ किया और अगले दिन द्वादशी को पारण किया. व्रत के प्रभाव स्वरूप कुछ समय के पश्चात रानी गर्भवती हो गई और रानी ने एक सुकुमार पुत्र को जन्म दिया, इस प्रकार जो व्यक्ति इस व्रत को रखते हैं उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. संतान होने में यदि बाधाएं आती हैं तो इस व्रत के रखने से वह दूर हो जाती हैं. जो मनुष्य इस व्रत के महात्म्य को सुनता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.!
-:’पुत्रदा एकादशी महत्व’:-
इस व्रत के नाम के अनुसार ही इसका फल है. जिन व्यक्तियों को संतान होने में बाधाएं आती है अथवा जो व्यक्ति पुत्र प्राप्ति की कामना करते हैं उनके लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत बहुत ही शुभफलदायक होता है. इसलिए संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को व्यक्ति विशेष को अवश्य रखना चाहिए, जिससे उसे मनोवांछित फलों की प्राप्ति हो सके.
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