Mahakaleshwar Jyotirlinga: श्रावण विशेषांक,श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

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ॐ सर्वेश्वराय विद्महे, शूलहस्ताय धीमहि.तन्नो रूद्र प्रचोदयात् ||

ॐ नमः शिवाय……भारत देश धार्मिक आस्था और विश्वास का देश है.तथा ईद देश में अनेकानेक धर्मस्थल है.इन धर्मस्थलों “ज्योतिर्लिंगों” को विशेष स्थान प्राप्त हैं,और इन दिव्य द्वादश ज्योतिर्लिंगों की विशेष रुप से पूजा की जाती है.!

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥

महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है,यह मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित,महाकालेश्वर भगवान का प्रमुख मंदिर है,पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है,स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी महत्ता है,इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, ऐसी मान्यता है,महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है,1235 ई. में इल्तुत्मिश के द्वारा इस प्राचीन मंदिर का विध्वंस किए जाने के बाद से यहां जो भी शासक रहे,उन्होंने इस मंदिर के जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया,इसीलिए मंदिर अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर सका है,प्रतिवर्ष और सिंहस्थ के पूर्व इस मंदिर को सुसज्जित किया जाता है.!

अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्॥
शिवपुराण के कोटिरुद्र संहिता खंड के अध्याय 15-16 में श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्रादुर्भाव की कथा और उसकी महिमा दी गयी है.!
ऋषियों ने सूती जी विनय की कि प्रभो.! अब आप विशेष कृपा करके तीसरे ज्योतिर्लिंग का वर्णन कीजिये.।

सूतोवाच (सूत जी कहते हैं) -: हे ब्राह्मणो.! मैं धन्य हूँ, कृत कृत्य हूँ,जो आप श्रीमानों का संग मुझे प्राप्त हुआ,साधु पुरुषों का संग निश्चय ही धन्य है,अतः मैं अपना सौभाग्य समझकर पापनाशिनी परम पावनी दिव्य कथाका वर्णन करता हूँ,आप लोग आदर पूर्वक श्रवण करें सुनें.!

अवन्ति नामसे प्रसिद्ध एक रमणीय नगरी है, जो समस्त देह धारियों को मोक्ष प्रदान करनेवाली है,वह भगवान् शिव को बहुत ही प्रिय,परम पुण्यमयी और लोकपावनी है,उस पुरी में एक श्रेष्ठ ब्राह्मण रहते थे, जो शुभ कर्म परायण, वेदों के स्वाध्याय में संलग्न तथा वैदिक कर्मों के अनुष्ठान में सदा तत्पर रहने वाले थे,वह घर में अग्नि की स्थापना करके प्रतिदिन अग्निहोत्र करते और भगवान शिव की पूजा में सदा तत्पर रहते थे,वह ब्राह्मण देवता प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा किया करते थे.।

वेदप्रिय नामक वह ब्राह्मण देवता सम्यक् ज्ञानार्जन में लगे रहते थे,इसलिये उन्होंने सम्पूर्ण कर्मों का फल पाकर वह सद्‌गति प्राप्त कर ली,जो संतों को ही सुलभ होती है,उनके चार तेजस्वी पुत्र थे,जो पिता-माता से सद्‌गुणों में कम नहीं थे,उनके नाम थे – देवप्रिय, प्रियमेधा, सुकृत और सुव्रत।

उनके सुखदायक गुण वहाँ सदा बढ़ने लगे,उनके कारण अवन्ति-नगरी ब्रह्मतेज से परिपूर्ण हो गयी थी,उसी समय रत्नमाल पर्वत पर दूषण नामक एक धर्म द्वेषी असुर ने ब्रह्माजी से वर पाकर वेद,धर्म तथा धर्मात्माओं पर आक्रमण किया,अन्त में उसने सेना लेकर अवन्ति (उज्जैन) के ब्राह्मणों पर भी चढ़ाई कर दी,उसकी आज्ञा से चार भयानक दैत्य चारों दिशाओं में प्रलयाग्नि के समान प्रकट हो गये,परंतु वह शिवविश्वासी ब्राह्मण-बन्धु उनसे डरे नहीं,जब नगरके ब्राह्मण बहुत घबरा गये, तब उन्होंने उनको आश्वासन देते हुए कहा आपलोग भक्तवत्सल भगवान् शंकर पर भरोसा रखें,तथ स्वयं पार्थिव शिवलिंग का पूजन करके वे भगवान् शिवका ध्यान करने लगे.।

इतने में ही सेना सहित दूषण ने आकर उन ब्राह्मणों को देखा और कहा इन्हें मार डालो अथवा बाँध लो, वेदप्रिय के पुत्र उन ब्राह्मणों ने उस समय उस दैत्यकी कही हुई वह बात नहीं सुनी,क्योंकि वह भगवान् शम्भु के ध्यानमार्ग में स्थित थे.उस दुष्टात्मा दैत्य ने ज्यों ही उन ब्राह्मणों को मारने की इच्छा की, त्यों ही उनके द्वारा पूजित पार्थिव शिवलिंग के स्थान पर बड़ी भारी आवाज के साथ एक गड्ढा प्रकट हो गया,उस गड्ढेसे तत्काल विकट रूपधारी भगवान् शिव प्रकट हो गये,जो महाकाल नाम से विख्यात हुए. वह दुष्टों के विनाशक तथा सत्पुरुषों के आश्रयदाता हैं.।

उन्होंने उन दैत्यों से कहा अरे खल.! मैं तुझ-जैसे दुष्टों संहार के लिये महाकाल में प्रकट हुआ हूँ,तुम इन ब्राह्मणों के निकट से दूर भाग जाओ,ऐसा कहकर महाकाल शंकर ने सेना सहित दूषण को अपने हुंकार मात्र से तत्काल भस्म कर दिया,कुछ सेना उनके द्वारा मारी गयी और कुछ भाग खड़ी हुई, परमात्मा शिव ने दूषण का वध कर डाला.।

जैसे सूर्य को देखकर सम्पूर्ण अन्धकार नष्ट हो जाता है,उसी प्रकार भगवान् शिव को देखकर उसकी सारी सेना अदृश्य हो गयी,देवताओं की दुन्दुभियाँ बज उठीं और आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी, उन ब्राह्मणों को आश्वासन दे सुप्रसन्न हुए स्वयं महाकाल महेश्वर शिव ने उनसे कहा तुमलोग वर माँगो, उनकी वह बात सुनकर वह सभी ब्राह्मण हाथ जोड़ भक्तिभाव से भलीभाँति प्रणाम करके नतमस्तक हो बोले.।

द्विजों ने कहा महाकाल.! महादेव.! दुष्टोंको दण्ड देने वाले प्रभो.! शम्भो.! आप हमें संसार सागरसे मोक्ष प्रदान करें.।
शिव.! आप जन साधारण की रक्षाके लिये सदा यहीं रहें,प्रभो.! शम्भो.! आपके दर्शन करने वाले मनुष्यों का आप सदा ही उद्धार करें.।
सूतजी कहते हैं -: महर्षियो.! उनके ऐसा कहनेपर उन्हें सद्‌गति दे भगवान् शिव अपने भक्तों की रक्षा के लिये उस परम सुन्दर गड्ढेमें स्थित हो गये,वह ब्राह्मण मोक्ष पा गये और वहाँ चारों ओर की एक-एक कोस भूमि लिंग रूपी भगवान् शिव का स्थल बन गयी,वह शिव भूतल पर महाकालेश्वर के नाम से विख्यात हुए,ब्राह्मणो.! उनका दर्शन करने से स्वप्न में भी कोई दुःख नहीं होता.जिस-जिस कामना को लेकर कोई उस लिंग की उपासना करता है,उसे वह अपना मनोरथ प्राप्त हो जाता है तथा परलोक में मोक्ष भी मिल जाता है.।

-:’महाकाल स्तोत्र”:-
ॐ महाकाल महाकाय महाकाल जगत्पते.!
महाकाल महायोगिन महाकाल नमोस्तुते.II
महाकाल महादेव महाकाल महा प्रभो.!
महाकाल महारुद्र महाकाल नमोस्तुते.II
महाकाल महाज्ञान महाकाल तमोपहन.!
महाकाल महाकाल महाकाल नमोस्तुते.II
भवाय च नमस्तुभ्यं शर्वाय च नमो नमः.!
रुद्राय च नमस्तुभ्यं पशुना पतये नमः.II
उग्राय च नमस्तुभ्यं महादेवाय वै नमः.!
भीमाय च नमस्तुभ्यं मिशानाया नमो नमः.II
ईश्वराय नमस्तुभ्यं तत्पुरुषाय वै नमः.!
सघोजात नमस्तुभ्यं शुक्ल वर्ण नमो नमः.II
अधः काल अग्नि रुद्राय रूद्र रूप आय वै नमः.!
स्थितुपति लयानाम च हेतु रूपआय वै नमः.!
परमेश्वर रूप स्तवं नील कंठ नमोस्तुते.II
पवनाय नमतुभ्यम हुताशन नमोस्तुते.!
सोम रूप नमस्तुभ्यं सूर्य रूप नमोस्तुते.II
यजमान नमस्तुभ्यं अकाशाया नमो नमः.!
सर्व रूप नमस्तुभ्यं विश्व रूप नमोस्तुते.II
ब्रहम रूप नमस्तुभ्यं विष्णु रूप नमोस्तुते.!
रूद्र रूप नमस्तुभ्यं महाकाल नमोस्तुते.II
स्थावराय नमस्तुभ्यं जंघमाय नमो नमः.!
नमः उभय रूपा भ्याम शाश्वताय नमो नमः.II
हुं हुंकार नमस्तुभ्यं निष्कलाय नमो नमः.!
सचिदानंद रूपआय महाकालाय ते नमः.II
प्रसीद में नमो नित्यं मेघ वर्ण नमोस्तुते.!
प्रसीद में महेशान दिग्वासाया नमो नमःII
ॐ ह्रीं माया स्वरूपाय सच्चिदानंद तेज से स्वः सम्पूर्ण मन्त्राय सोऽहं हंसाय ते नमः

—:”फल श्रुति:”:—
II.इत्येवं देव देवस्य मह्कालासय भैरवी कीर्तितम पूजनं सम्यक सधाकानाम सुखावहम.II

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