Vaidic Jyotish
October 15, 2024 3:05 PM

Varad Kund Chaturthi: वरद कुन्द चतुर्थी

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on telegram
Share on email
Share on print
Share on pinterest

श्री गणेशाय नमः…माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को “वरद कुंद चतुर्थी” के रुप में मनाया जाता है. वैसे यह चतुर्थी अन्य नामों से भी जानी जाती है. जिसमें इसे तिल, कुंद, विनायक आदि नाम भी दिए गए हैं. इस दिन भगवान श्री गणेश का पूजन होता है. वरद चतुर्थी जीवन में सभी सुखों का आशीर्वाद प्रदान करने वाली है. भगवन श्री गणेश द्वारा दिया गया आशीर्वाद ही “वरद” होता है.!

भगवान श्री गणेश का एक नाम वरद भी है जो सदैव भक्तों को भय मुक्ति और सुख समृद्धि का आशीर्वाद होता है. चतुर्थी तिथि भगवान गणेश की पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण बतायी गयी है. इसलिए प्रत्येक माह की चतुर्थी तिथि के गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है. भगवान श्री गणेश चतुर्थी का उत्सव संपूर्ण भारत वर्ष में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. चतुर्थी को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारी जाती है. शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को वरद विनायकी चतुर्थी के नाम से भी पुकारा जाता है. चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी पर श्री गणेश का पूजन करना अत्यंत ही शुभदायक होता है.!

-:वरद कुंद चतुर्थी मुहूर्त:-
इस वर्ष माघ मास के शुक्ल पक्ष के दौरान आने वाली कुंद चतुर्थी का पर्व 12 फरवरी 2024 को मनाया जाएगा.

चतुर्थी तिथि आरंभ – 12 फरवरी 2024
चतुर्थी तिथि समाप्त – 13 जनवरी 2024

वरद कुंद चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश जी का पूजन उल्लास और उत्साह के साथ होता है. चतुर्थी तिथि व्रत के नियमों का पालन चतुर्थी तिथि से पूर्व ही आरंभ कर देना चाहिए. पूजा वाले दिन प्रात:काल उठ कर श्री गणेश जी के नाम का स्मरण करना चाहिए. चतुर्थी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. चतुर्थी व्रत वाले दिन नाम स्मरण का विशेष महत्व रहा है. कुंद चतुर्थी पूजा स्थल पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए. अक्षत, रोली, फूल माला, गंध, धूप आदि से गणेश जी को अर्पित करने चाहिए. गणेश जी दुर्वा अर्पित और लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए. पूजा की विधि इस प्रकार है:-

-:जिस स्थान पर पूजा करनी है उस स्थान को गंगाजल से शुद्ध करना चाहिए. पूजा के लिए ईशान दिशा का होना शुभ माना गया है. गणेश जी की प्रतिमा और चित्र को स्थापित करना चाहिए.!
-:भगवान श्री गणेश जी पूजा में दूर्वा का उपयोग अत्यंत आवश्यक होता है. इसका मुख्य कारण है की दुर्वा(घास) भगवान को अत्यंत प्रिय है.!
-:भगवान गणेश के सम्मुख ऊँ गं गणपतयै नम: का मंत्र बोलते हुए दुर्वा अर्पित करनी चाहिए.
-:इसके बाद आसन पर बैठकर भगवान श्रीगणेश का पूजन करना चाहिए.!
-:कपूर, घी के दीपक से आरती करनी चाहिए.!
-:भगवान को भोग लगाना चाहिए. तिल और गुड़ से बने लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए और उस प्रसाद को सभी में बांटना चाहिए.!
-:व्रत में फलाहार का सेवन करते हुए संध्या समय गणेश जी की पुन: पूजा अर्चना करनी चाहिए. पूजा के पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए उसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए.!
-:इस दिन दान का भी विशेष शुभ फल मिलता है. इसलिए इस दिन गर्म कपड़े, कंबल, गुड़, तिल इत्यादि वस्तुओं का दान करना चाहिए. इस प्रकार विधिवत भगवान श्रीगणेश का पूजन करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि में निरंतर वृद्धि होती है.!

-:’चतुर्थी व्रत कथा’:-
चतुर्थी व्रत से सबंधित कथा भगवान श्री गणेश जी के जन्म से संबंधित है तो कुछ कथाएं भगगवान के भक्त पर की जाने वाली असीम कृपा को दर्शाती है. इसी में एक कथा इस प्रकार है. शिवपुराण में बताया गया है कि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर गणेशजी का जन्म हुआ था. इस कारण चतुर्थी तिथि को जन्म तिथि के रुप में मनाया जाता है. इस दिन गणेशजी के लिए विशेष पूजा-पाठ का आयोजन होता है. मान्यता के अनुसार एक बार माता पार्वती स्नान के लिए जब जाने वाली होती हैं तो वह अपनी मैल से एक बच्चे का निर्माण करती हैं और उस बालक को द्वारा पर पहरा देने को कहती हैं.!
उस समय भगवान शिव जब अंदर जाने लगते हैं तो द्वार पर खड़े बालक, शिवजी को पार्वती से मिलने से रोक देते है. बालक माता पार्वती की आज्ञा का पालन कर रहे होते हैं. जब शिवजी को बालक ने रोका तो शिवजी क्रोधित हो गए और अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर धड़ से अलग कर देते हैं. जब पार्वती को ये बात मालूम हुई तो वह बहुत क्रोधित होती हैं. वह शिवजी से बालक को पुन: जीवित करने के लिए कहती हैं. तब भगवान शिव ने उस बालक के धड़ पर हाथी का सिर लगा कर उसे जीवित कर देते हैं. उस समय बालक को गणेश नाम प्राप्त होता है. वह बालक माता पार्वती और भगवन शिव का पुत्र कहलाते हैं.!

-:’चंद्रमा का क्यों मिला श्राप’:-
वरद चतुर्थी तिथि शुरू होने से लेकर खत्म होने तक चन्द्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए. मान्यता है की चतुर्थी तिथि के दिन चंद्र देव को नहीं देखना चाहिए. पौराणिक कथाओं के अनुसार चंद्रमा को भगवान श्री गणेश द्वारा श्राप दिया गया था की यदि कोई भी भाद्रपद माह चतुर्थी तिथि के दिन चंद्रमा का दर्शन करेगा तो उसे कलंक लगेगा. ऎसे में इस कारण से चतुर्थी तिथि के दिन चंद्रमा के दर्शन को मना किया जाता है. कहा जाता है कि इस दोष से मुक्ति के लिये वरद गणेश चतुर्थी के व्रत को किया और मिथ्या दोष से मुक्ति को प्राप्त होते हैं.!
एक बार चंद्रमा, गणेशजी का ये स्वरूप देखकर उन पर हंस पड़ते हैं. जब गणेश जी ने चंद्र को ऎसा करते देखा तो उन्होंने कहा की “चंद्रदेव तुम्हें अपने रुप पर बहुत घमण्ड है अत: मै तुम्हें श्राप देता हूं की तुम्हारा रुप सदैव ऎसा नहीं रहेगा”. गणेश जी के चंद्र को दिए शाप के कारण ही वह सदैव धीरे-धीरे क्षीण होने लगते हैं और आकार में बदलाव रहता है.!
श्राप को सुनकर चंद्रमा को अपने अपराध पर पश्चताप होता है और वे गणेश से क्षमा मांगते हैं. तब गणेश उन्हें कहते हैं कि श्राप निष्फल नहीं होगा. पर इस का असर कम हो सकता है. तुम चतुर्थी का व्रत करो तो इसके पुण्य से तुम फिर से बढ़ने लगोगे. चंद्रमा ने ये व्रत किया. इसी घटना के बाद से चंद्र कृष्ण पक्ष में घटता है और फिर शुक्ल पक्ष में बढ़ने लगता है. गणेशजी के वरदान से ही चतुर्थी तिथि पर चंद्र दर्शन करने का विशेष महत्व है. इस दिन व्रत करने वाले भक्त चंद्र पूजन के पश्चात ही भोजन ग्रहण करते हैं.!

नोट :- ज्योतिष अंकज्योतिष वास्तु रत्न रुद्राक्ष एवं व्रत त्यौहार से सम्बंधित अधिक जानकारी ‘श्री वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु सदन’ द्वारा समर्पित ‘Astro Dev’ YouTube Channel & www.vaidicjyotish.com & Facebook पर प्राप्त कर सकते हैं.!

नोट :- ज्योतिष अंकज्योतिष वास्तु रत्न रुद्राक्ष एवं व्रत त्यौहार से सम्बंधित अधिक जानकारी ‘श्री वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु सदन’ द्वारा समर्पितAstro Dev YouTube Channel & www.vaidicjyotish.com & Facebook Pages पर प्राप्त कर सकते हैं.II
Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on telegram
Share on email
Share on print
Share on pinterest