November 21, 2024 8:45 PM

Vat Savitri Vrat 2024 Date: वटसावित्री (पूर्णिमा) व्रत

'ज्योतिर्विद डी डी शास्त्री'

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on telegram
Share on email
Share on print
Share on pinterest

नमो नारायण…..वट सावित्री व्रत वर्ष 2024 में शुक्रवार 21 जून को किया जाएगा,भारतीय संस्कृति में वट सावित्री व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है,इस व्रत की तिथि को लेकर भिन्न मत हैं,स्कंद पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान है,वहीं निर्णयामृत आदि के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को व्रत करने की बात कही गई है, वट सावित्री व्रत सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना गया है.!

-:’at Savitri Vrat 2024: वट सावित्री व्रत पूजा-विधि’:-
-:वट सावित्री व्रत को करने के लिए प्रात काल स्नान कर वट वृक्ष के नीचे सावित्री सत्यवान और यमराज की मूर्ति स्थापित करें.!
-:वट वृक्ष की जड़ में जल अर्पण करें फूल, धूप और मिठाई से वट वृक्ष का पूजन करें.!
-:कच्चा सूत लेकर वट वृक्ष की परिक्रमा करते हुए इसके तने में सूत लपेटते जाएं.!
-:सात बात परिक्रमा करना शुभ माना जाता है.इसके अलावा हाथ में भीगा चना लेकर सावित्री सत्यवान की कथा सुने.!
-:फिर यह भीगा चना,द्रव्य और वस्त्र अपनी सास को देखकर उनसे आशीर्वाद लें.!
-:वट वृक्ष की कोपल {कोमल पत्तियों} का सेवन कर उपवास समाप्त करना सर्वोत्तम रहता हैं.!

-:at Savitri Vrat 2024: वट सावित्री व्रत कथा:-
प्राचीन काल में मद्रदेश में अश्वपति नाम के एक राजा राज करते थे,वह बड़े धर्मात्मा, ब्राह्मण भक्त, सत्यवादी और जितेंद्रिय थे,राजा को सब प्रकार का सुख था परंतु उन्हें कोई संतान नहीं थी,इसलिए उन्होंने संतान प्राप्ति की कामना से अठारह वर्षों तक सावित्री देवी की कठोर तपस्या की,सावित्री देवी ने उन्हें एक तेजस्विनी कन्या की प्राप्ति का वर दिया.!

यथा समय राजा की बड़ी रानी के गर्भ से एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया,राजा ने उस कन्या का नाम सावित्री रखा,राजकन्या शुक्ल पक्ष के चंद्रमा की भांति दिनों दिन बढऩे लगी,धीरे-धीरे उसने युवावस्था में प्रवेश किया,उसके रूप लावण्य को जो भी देखता उस पर मोहित हो जाता.!

जब राजा के विशेष प्रयास करने पर भी सावित्री के योग्य कोई वर नहीं मिला तो उन्होंने एक दिन सावित्री से कहा, ‘‘बेटी..! अब तुम विवाह के योग्य हो गई हो इसलिए स्वयं अपने योग्य वर की खोज करो.!
पिता की आज्ञा स्वीकार कर सावित्री योग्य मंत्रियों के साथ स्वर्ण रथ पर बैठ कर यात्रा के लिए निकली,कुछ दिनों तक ब्रह्मर्षियों और राजर्षियों के तपोवनों और तीर्थों में भ्रमण करने के बाद वह राजमहल में लौट आई,उसने पिता के साथ देवर्षि नारद को बैठे देख कर उन दोनों के चरणों में श्रद्धा से प्रणाम किया.!

महाराज अश्वपति ने सावित्री से उसकी यात्रा का समाचार पूछा,सावित्री ने कहा, ‘‘पिता जी.! तपोवन में अपने माता-पिता के साथ निवास कर रहे द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान सर्वथा मेरे योग्य हैं,अत: मैंने मन से उन्हीं को अपना पति मान लिया है.!

नारद जी सहसा चौंक उठे और बोले, ‘‘राजन.! सावित्री ने बहुत बड़ी भूल कर दी है,सत्यवान के पिता शत्रुओं के द्वारा राज्य से वंचित कर दिए गए हैं,वह वन में तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे हैं और अंधे हो चुके हैं,सबसे बड़ी कमी यह है कि सत्यवान की आयु अब केवल एक वर्ष ही शेष है.!

नारद जी की बात सुनकर राजा अश्वपति व्यग्र हो गए,उन्होंने सावित्री से कहा, ‘‘बेटी.! आप पुनः से यात्रा आरम्भ करो और किसी दूसरे योग्य वर का वरण करो.!
सावित्री सती थी,उसने दृढ़ता से कहा, ‘‘पिताजी.! सत्यवान चाहे अल्पायु हों या दीर्घायु, अब तो वही मेरे पति हैं,जब मैंने एक बार उन्हें अपना पति स्वीकार कर लिया फिर मैं दूसरे पुरुष का वरण कैसे कर सकती हूं.?’’

सावित्री का निश्चय दृढ़ जानकर महाराज अश्वपति ने उसका विवाह सत्यवान से कर दिया,धीरे-धीरे वह समय भी आ पहुंचा जिसमें सत्यवान की मृत्यु निश्चित थी,सावित्री ने उसके चार दिन पूर्व से ही निराहार व्रत रखना शुरू कर दिया था,पति एवं सास-ससुर की आज्ञा से सावित्री भी उस दिन पति के साथ जंगल में फल-फूल और लकड़ी लेने के लिए गई,अचानक वृक्ष से लकड़ी काटते समय सत्यवान के सिर में भयानक दर्द होने लगा और वह पेड़ से नीचे उतरकर पत्नी की गोद में लेट गये.!

उस समय सावित्री को लाल वस्त्र पहने भयंकर आकृति वाला एक पुरुष दिखाई पड़ा,वह साक्षात यमराज थे,उन्होंने सावित्री से कहा, ‘‘आप पतिव्रता है,आपके पति की आयु समाप्त हो गई है,मैं इसे लेने आया हूं.!

इतना कह कर यमराज ने सत्यवान के शरीर से सूक्ष्म जीव को निकाला और उसे लेकर वे दक्षिण दिशा की ओर चल दिए,सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल दी,सावित्री की बुद्धिमत्तापूर्ण और धर्मयुक्त बातें सुनकर यमराज का हृदय पिघल गया,सावित्री ने उनसे अपने सास-ससुर की आंखें अच्छी होने के साथ राज्य प्राप्ति का वर, पिता को पुत्र प्राप्ति का वर और स्वयं के लिए पुत्र वती होने का आशीर्वाद भी प्राप्त कर लिया।,इस प्रकार सावित्री ने सतीत्व के बल पर अपने पति को मृत्यु के मुख से छीन लिया.!

-:’Vat Savitri Vrat 2024: वट सावित्री व्रत महत्व’:-
सनातन धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व बताया गया है.इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा की जाती है.ऐसा कहा जाता है कि बरगद के पेड़ में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है.जिसके कारण इस दिन इस वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा करना और वट सावित्री व्रत की कथा सुनने से व्रती की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.धार्मिक ग्रंथों में वट वृक्ष को निर्वाण, ज्ञान, और दीर्घायु का पूरक माना गया है.II

नोट :- ज्योतिष अंकज्योतिष वास्तु रत्न रुद्राक्ष एवं व्रत त्यौहार से सम्बंधित अधिक जानकारी ‘श्री वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु सदन’ द्वारा समर्पितAstro Dev YouTube Channel & www.vaidicjyotish.com & Facebook Pages पर प्राप्त कर सकते हैं.II
Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on telegram
Share on email
Share on print
Share on pinterest