जय नारायण…सनातन संस्कृति में अधिक मास का धार्मिक रूप से अत्यधिक महत्व है,यह तीन वर्ष में एक बार आता है,इसके अनेक नाम हैं जैसे पुरुषोत्तम मास,अधिकमास,मलमास,संसर्प, मलिम्लुच, आदि.प्रत्येक भाषा में इसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है.।
अधिक मास को पुरुषोत्तम मास क्यों कहते हैं..?
पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार जिस प्रकार प्रत्येक मास का कोई न कोई स्वामी होता है किन्तु अधिकमास का कोई स्वामी नहीं है,पौराणिक ग्रन्थों की कथा के अनुसार एक बार अधिक मास भगवान विष्णु के पास गया और उसने उन्हें अपनी समस्या बतलाई,वह बहुत दु:खी था कि उसका कोई स्वामी नहीं है,विष्णु भगवान ने उसे दु:खी देखा तो उन्हेंं उस पर दया आ गई,उसी दिन से ही भगवान विष्णु ने उसे अपना नाम दे दिया और तभी से यह मास पुरुषोत्तम मास के नाम से प्रसिद्ध हो गया.।
यस्मिन् चान्द्रे न संक्रान्ति: सो अधिमासो निहह्यते,
तत्र मंगल कार्याणि नैव कुर्यात् कदाचन
यस्मिन् मासे द्वि संक्रान्ति क्षय:मास: स कथ्यते,
तस्मिन् शुभाणि कार्याणि यत्नत: परिवर्जयेत।।
II.त्रयोदश: मास: इन्द्रस्य गृह:.II
अर्थात् -: चन्द्र संक्रान्ति न होने पर इस माह में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित है,अधिक मास में श्रीराम, श्रीकृष्ण, श्रीविष्णु तथा भगवान शंकर जी की भक्ति भाव से पूजन अर्चन धार्मिक पुस्तक का पारायण तथा श्रीगीताजी के पन्द्रहवें अध्याय का वाचन किया जाता है। उन सबका सौ गुना फल प्राप्त होता है। अत: हमें अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार भगवान की आराधना करनी चाहिए
वर्ष 2023 में 18 जुलाई दिन मंगलवार से पुरुषोत्तममास/अधिकमास/मलमास आरम्भ हो रहा है जो कि बुधवार 16 अगस्त को समाप्त होगा, अधिकमास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है क्योंकि इसके स्वामी स्वयं भगवान श्रीहरि हैं,पुरुषोत्तम मास का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है,इस माह भगवान विष्णु की आराधना और भागवत कथा श्रवण करना बेहद पुण्यदायी माना गया है,मान्यता है कि इस मास किए गए धार्मिक कार्यों और पूजा पाठ का अत्यधिक फल प्राप्त होता है,तथा पितृ मोक्ष हेतु यह मास सर्वोपरि होता है.!
श्रीभगवान ने मलमास को अपना पुरुषोत्तम नाम ही क्यों दिया,अन्य कोई क्यों नहीं.?
इसका उत्तर पुरुषोत्तम के अर्थ में छिपा है,पुरुषोत्तम का अर्थ है पुरुषों में उत्तम ‘पुरुषाणमुत्तमः पुरुषोत्तमः’ अर्थात श्रीभगवान पुरुष मात्र नहीं,पुरुषों में सर्वोत्तम हैं,पुरुष शब्द की उत्तम व्याख्या उपनिषदों में की गयी है तथा पुरुषसूक्त श्रीभगवान के लिए की जाने वाली सबसे अधिक प्रचलित स्तुति है.!
-:’पुरुषोत्तम मास में क्या करें क्या न करें’:-
विहित कार्य -: सभी नित्य कर्म,सभी नैमित्तिक कर्म,नित्य दान,मन्वादि तिथियों का दान,जन्मदिन पूजन, नामकरण, सभी कार्य जो निष्काम भाव से किये जायें,वार्षिक श्राद्ध, दर्शश्राद्ध, प्रेतश्राद्ध, तीर्थश्राद्ध, गजच्छाया श्राद्ध,ग्रहणस्नान, प्राण घातक रोगादि की निवृत्ति के रुद्र (मृत्युंजय/महामृत्युंजय/अमृरसंजीवनी) जपादि अनुष्ठान, कपिलषष्ठी जैसे अलभ्य योगों के प्रयोग,बुधाष्टमी आदि के प्रयोग,तथा स्मृति-रत्नावली ग्रन्थ में आया है कि जिस काम्य कर्म का प्रारम्भ मलमास से पहले हो चुका है,उसकी समाप्ति इसमें हो सकती है,और पितृ मुक्ति से सम्वन्धित कब्य जपादि दान अनुष्ठान इस माह कर सकते हैं.I
वर्जित कार्य :- अग्नयाधान,यज्ञ,मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा,माङ्गलिक कार्य,विशेष दान,महादान,गौदान, व्रत, वेदव्रत (वेदाध्ययन का आरम्भ), दीक्षा,महोत्सव,व्रतोत्सर्ग,चूड़ाकर्म,देवतीर्थों में गमन,वास्तुकर्म,ऐसे देव और तीर्थ का दर्शन जो पहले न देखे हों,विवाह,किसी कामना के लिए देवता का अभिषेक/पूजन, गृहारम्भ,गृहप्रवेश,कुँआ तालाब आदि खुदवाना,किसी भी काम्य कार्य का आरम्भ,उद्यापन कर्म, महालय,अष्टकाश्राद्ध,उपाकर्म, यज्ञोपवीत संस्कार,मुण्डन, संन्यास ।
अधिकमास के वर्जित कार्य देखकर लोगों को ऐसा आभास होता है कि इसमें जपादि नहीं करने चाहिए, जो कि अर्द्धसत्य है,अधिकमास में किसी कामना से जपादि वर्जित हैं जबकि निष्काम जपादि करने का करोड़ों गुना महत्व है,पुराणों ने तो यहाँ तक कह दिया है कि जो मनुष्य इस अधिमास में जप, दान नहीं करते,वह महामूर्ख हैं, -: य एतस्मिन्महामूढ जपदानादिवर्जिताः, वह दुष्ट,अभागी और दूसरे के भाग्य से जीवन चलाने वाले होते हैं,जायन्ते दुर्भगा दुष्टाः परभाग्योपजीविनः अर्थात भाग्यहीन होते हैं.।
लक्ष्मीनारायण संहिता में वर्णित नारायण सहस्रनाम स्तोत्र में वर्णित है -: भूमा त्वं पूरुषसंज्ञः पुरुषोत्तम इत्यपि,महाभारत के अनुसार -: पूरणात् सदनाच्चापि ततोऽसौ पुरुषोत्तमः,असतश्च सतश्चैव सर्वस्य प्रभवाप्ययात्.!
भगवान सर्वत्र परिपूर्ण हैं तथा सर्वव्यापक हैं,इसलिये ‘पुरुष’ हैं और सब पुरुषों मे उत्तम होने के कारण उनकी ‘पुरुषोत्तम’ सञ्ज्ञा है.!
गीता में भगवान् ने कहा है -:
यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तमः।
अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः॥
‘मैं क्षर (नाशवान जड़ पदार्थ) से परे और अक्षर (अविनाशी आत्मा) से भी उत्तम हूँ,इसलिये लोक और वेद में पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हूँ.।’
चूँकि अधिकमास/मलमास श्रीभगवान के पास जब गया था तो वह दुःखी और इस हीन भावना से ग्रस्त था कि उसको सब निम्न कोटि का समझते हैं,उसका तिरस्कार करते हैं,इस कारण श्रीभगवान ने उसको अपने ब्रह्मस्वरूप नाम पुरुष में भी उत्तम पुरुषोत्तम नाम से विभूषित कर दिया.।
इसके अतिरिक्त मलमास को न केवल विकारों से युक्त (जैसे कि संक्रान्ति रहित) बताया गया था, वरन इसकी उत्पत्ति का कारण ही विकार (जैसा कि ऊपर बताया गया है) था,अतः श्रीभगवान विष्णु जो जन्म,वृद्धि,परिणाम,क्षय,हेयता और नाश; इन छः भाव-विकारों से परे पुरुषों में उत्तम हैं,इसे अपना पुरुषोत्तम नाम प्रदान किया.।
01- धर्म कर्म के कार्यों के लिए अधिकमास विशेष उपयोगी माना गया है,इस मास में भगवान कृष्ण और विष्णु भगवान की कथाओं को सुनना चाहिए,दान पुण्य के कार्य करने चाहिए,अधिकमास में श्रीमद्भगवद्गीता, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ, राम कथा और गीता का अध्याय करना चाहिए,सुबह शाम ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए.!
02- अधिकमास में जप तप के अलावा भोजन का भी ध्यान रखना चाहिए,इस पूरे मास में एक समय ही भोजन करना चाहिए,इस मास में चावल, जौ, तिल, केला, दूध, दही, जीरा, सेंधा नमक, ककड़ी, गेहूं, बथुआ, मटर, पान सुपारी, कटहल, मेथी आदि चीजों के सेवन का विधान है,इस मास में ब्राह्मण, गरीब व जरूरतमंद को भोजन करना चाहिए और दान करना चाहिए.!
03- अधिकमास में दीपदान करने का विशेष महत्व है,साथ ही इस माह एक बार ध्वजा दान भी अवश्य करना चाहिए, इस अवधि में दान पुण्य के कार्य करना,सामाजिक व धार्मिक कार्य,साझेदारी के कार्य, वृक्ष लगाना, सेवा कार्य, मुकदमा लगाना आदि कार्यों में कोई दोष नहीं होता है.।
04- अधिकमास में सगाई एवं विवाह अथवा विवाह से सम्वन्धित कोई भी कार्य तय न करें, भूमि व मकान खरीदने का कॉन्ट्रैक्ट कर सकते हैं,साथ ही आप शुभ योग व मुहूर्त में खरीदारी भी कर सकते हैं, इसके अलावा आप संतान के जन्म संबंधी कार्य कर सकते हैं,सीमांत, शल्य कार्य आदि कार्य भी कर सकते हैं.।
-:’पुरुषोत्तम/मलमास में क्या ना करें’:-
01- अधिकमास या मलमास में मांस-मछली,शहद, मसूर दाल और उड़द दाल, मूली, प्याज-लहसुन, नशीले पदार्थ, बासी अन्न, राई आदि चीजों का सेवन करने से बचना चाहिए.!
02- इस माह में तिलक, मुंडन, कर्णछेदन, गृह प्रवेश, संन्यास, यज्ञ, दीक्षा लेना, देव प्रतिष्ठा, विवाह आदि शुभ व मांगलिक कार्यों को करना वर्जित बताया गया है.!
03- अधिकमास में घर, मकान, दुकान, वाहन, वस्त्र आदि की खरीदारी नहीं करना चाहिए,हालांकि शुभ मुहूर्त निकलवाकर आभूषण खरीद सकते हैं.।
04- अधिकमास में शारीरिक और मानसिक रूप से किसी का अहित नहीं करना चाहिए,इस माह अपशब्द, क्रोध, गलत कार्य करना, चोरी, असत्य बोलना, गृहकलह आदि चीजें नहीं करना चाहिए,साथ ही तालाब, बोरिंग, कुआं आदि का त्याग करना चाहिए.।
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