Jivitputrika Vrat 2024: जय नारायण की….पंचांग के अनुसार हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है।,जीवित्पुत्रिका व्रत को जिउतिया, जितिया या ज्युतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है,इस साल यह व्रत 25 सितम्बर 2024 दिन बुद्धवार को रखा जा रहा है। जीवित्पुत्रिका व्रत निर्जला होता है। माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र, समृद्धि और उन्नत जीवन के लिए इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं। मान्यताओं के अनुसार संतान के लिए किया गया यह व्रत किसी भी बुरी परिस्थिति में उसकी रक्षा करता है। यह कठिन व्रत उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अधिक प्रचलित है। संतान प्राप्ति की कामना के लिए भी यह व्रत रखा जाता है.संतान की लंबी उम्र के लिए आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है. इस वर्ष आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 25 सितंबर को पड़ रही है. इस वर्ष महिलाएं 25 सितंबर को जीवित्पुत्रिका का निर्जला व्रत रखेंगी और अगले दिन 26 सितंबर को पारण करेंगी.I
यह 24 घंटे का निर्जाला व्रत होता है। इसकी शुरुआत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से होती है। वहीं इसका समापन नवमी तिथि को होता है। इस बार यह व्रत 6 अक्तूबर 2023, शुक्रवार को मनाया जा रहा है। व्रत में 1 दिन से पहले तामसिक भोजन जैसे प्याज, लहसुन, मांसाहारी भोजन का
जितिया व्रत संतान की दीर्घायु और उनकी सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए निर्जला उपवास रखती हैं। इस उपवास में महिलाएं जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करती हैं.।
जितिया यानी जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन सुबह उठकर स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद व्रत रखने वाली महिलाएं प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल को भी साफ करना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत में एक छोटा सा तालाब बनाकर पूजा की जाती है.।
निर्जला उपवास रखने के बाद जितिया व्रत का पारण तीसरे दिन प्रातः काल पूजा-पाठ के बाद सूर्य देव को अर्घ्य देकर किया जाता है.।
-:’Jivitputrika Vrat 2024: जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा’:-
पौराणिक कथा के अनुसार, किसी गांव में पश्चिम की ओर एक बरगद का पेड़ था. दस पेड़ पर एक चील रहती थी और पेड़ के नीचे एक मादा सियार रहती थी. दोनों में गहरी दोस्ती हो गई. दोनों ने कुछ महिलाओं को जीवित्पुत्रिका व्रत करते देख तय किया कि वे भी यह व्रत रखेंगी. दोनों ने व्रत रखा. उसी दिन गांव में एक व्यक्ति की मौत हो गई. उस आदमी का दाह संस्कार बरगद के पेड़ के पास कर दिया गया. उस रात बारिश होने लगी और मादा सियार शव खाने के लिए ललचाने लगी. इस तरह मादा सियार का व्रत भंग हो गया जबकि चील ने अपना व्रत नहीं तोड़ा. अगले जन्म में चील और मादा सियार ने एक ब्राह्मण की दो बेटियों के रूप में जन्म लिया. समय आने पर दोनों बहनों शीलवती और कपुरावती का विवाह हो गया. शीलवती, जो पिछले जन्म में चील थी, को 7 पुत्र हुए और कपुरावती, जो पिछले जन्म में सियार थी के सभी पुत्र जन्म के बाद मर गए. कपुरावती को शीलवती के बच्चों से जलन होने लगी और और उसने शीलवती के सभी बेटों के सिर काट दिए. लेकिन, जीवितवाहन देवता ने बच्चों को फिर से जिंदा कर दिया. अगले दिन बच्चों को जीवित देख कपुरावती बेहोश हो गई. इसके बाद शीलवती ने उसे याद दिलाया कि पिछले जन्म में उसने व्रत भंग कर दिया था जिसके कारण उसके पुत्रों की मृत्यु हो जाती है. इस बात को सुनकर शोक ग्रस्त कपुरावती की मौत हो गई.I