ॐ सर्वेश्वराय विद्महे, शूलहस्ताय धीमहि.तन्नो रूद्र प्रचोदयात् ||
ॐ नमः शिवाय……भारत देश धार्मिक आस्था और विश्वास का देश है.तथा ईद देश में अनेकानेक धर्मस्थल है.इन धर्मस्थलों “ज्योतिर्लिंगों” को विशेष स्थान प्राप्त हैं,और इन दिव्य द्वादश ज्योतिर्लिंगों की विशेष रुप से पूजा की जाती है.!
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥
श्री केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित हिन्दुओं का प्रसिद्ध मंदिर है,उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है,यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है,पत्थरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डवों के पौत्र महाराजा जन्मेजय ने कराया था,यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है,आदि शंकराचार्य ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया.।
श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग पर्वतराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है,पुराणों एवं शास्त्रों में श्री केदारेश्वर-ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन बारंबार किया गया है,यहां की प्राकृतिक शोभा देखते ही बनती है,शिखर के पश्चिम भाग में मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित श्री केदारनाथ का मंदिर है और
शिखर के पूर्व में अलकनंदा के तट पर श्री बद्रीनाथ का परम प्रसिद्ध मंदिर है.।
अलकनंदा और मंदाकिनी यह दोनों नदियाँ नीचे रुद्रप्रयाग में आकर मिल जाती हैं,दोनों नदियों की यह संयुक्त धारा और नीचे देवप्रयाग में आकर भागीरथी गंगा से मिल जाती हैं,इस प्रकार परम पावन गंगाजी में स्नान करने वालों को भी श्री केदारेश्वर और बद्रीनाथ के चरणों को धोने वाले जल का स्पर्श
सुलभ हो जाता है,इस अतीव पवित्र पुण्यफलदायी ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में पुराणों में यह कथा वर्णित है :–
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं,सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः.I
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः,केदारमीशं शिवमेकमीडे.॥
शिवपुराण के कोटिरुद्र संहिता खंड के अध्याय 19 से 21 में श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्रादुर्भाव की कथा और उसकी महिमा दी गयी है.।
सूतोवाच (सूतजी कहते हैं) -: ब्राह्मणो.! भगवान् विष्णुके जो नर-नारायण नामक दो अवतार हैं और भारतवर्ष के बदरिकाश्रम तीर्थ में तपस्या करते हैं,उन दोनोंने पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसमें स्थित हो पूजा ग्रहण करने के लिये भगवान् शम्भु से प्रार्थना की.!
शिवजी भक्तों के अधीन होने के कारण प्रतिदिन उनके बनाये हुए पार्थिव लिंग में पूजित होने के लिये आया करते थे.जब उन दोनो के पार्थिव-पूजन करते बहुत दिन बीत गये, तब एक समय परमेश्वर शिव ने प्रसन्न होकर कहा – “मैं तुम्हारी आराधना से बहुत संतुष्ट हूँ,तुम दोनों मुझ से वर माँगो,उस समय उनके ऐसा कहने पर नर और नारायण ने लोगों के हित की कामना से कहा.!
“देवेश्वर.! यदि आप प्रसन्न हैं और यदि मुझे वर देना चाहते हैं तो अपने स्वरूप से पूजा ग्रहण करने के लिये यहीं स्थित हो जाइये.उन दोनों बन्धुओं के इस प्रकार अनुरोध करने पर कल्याणकारी महेश्वर हिमालय के उस केदारतीर्थ में स्वयं ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थित हो गये.!
उन दोनों से पूजित होकर सम्पूर्ण दुःख और भय का नाश करने वाले शम्भु लोगों का उपकार करने और भक्तों को दर्शन देने के लिये स्वयं केदारेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हो वहाँ विराजित हुए.वह दर्शन और पूजन करने वाले भक्तों को सदा अभीष्ट वस्तु प्रदान करते हैं,उसी दिन से लेकर जिसने भी भक्तिभाव से केदारेश्वर का पूजन किया, उसके लिये स्वप्न में भी दुःख दुर्लभ हो गया,जो भगवान् शिव का प्रिय भक्त वहाँ शिवलिंग के निकट शिव के रूप से अंकित वलय (कंकण या कड़ा) चढ़ाता है,वह उस वलययुक्त स्वरूप का दर्शन करके समस्त पापों से मुक्त हो जाता है,साथ ही जीवन्मुक्त भी हो जाता है.!
जो बदरीवन की यात्रा करता है,उसे भी जीवन् मुक्ति प्राप्त होती है,नर और नारायण के तथा केदारेश्वर शिव के रूप का दर्शन करके मनुष्य मोक्ष का भागी होता है,इसमें संशय नहीं है.।
केदारेश्वर में भक्ति रखने वाले जो भक्त वहाँ की यात्रा आरम्भ करके उनके पासतक पहुँचने के पहले मार्ग में ही मर जाते हैं,वे भी मोक्ष पा जाते हैं,इसमें विचार करने की आवश्यकता नहीं है, केदारतीर्थ में पहुँचकर वहाँ प्रेमपूर्वक केदारेश्वर की पूजा करके वहाँ का जल पी लेने के पश्चात् मनुष्य का फिर जन्म नहीं होता,ब्राह्मणो.! इस भारतवर्ष में सम्पूर्ण जीवों को भक्तिभाव से भगवान् नर-नारायण की तथा केदारेश्वर शम्भु की पूजा करनी चाहिये.।
-:’आदि शंकराचार्य द्वारा रचित शिव स्तुति’:-
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।।
महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।।
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।।
शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।।
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।।
न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।।
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।।
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।।
प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।।
शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।।
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।।
II.इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितो वेदसारशिवस्तवः संपूर्णः.॥
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