देवी के वरदान से सेठानी गर्भवती हुई और उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया। सेठ ने अपने पुत्र का नामकरण संस्कार किया और उसका नाम चिरायु रखा। समय बीतता गया और सेठ-सेठानी को पुत्र की मृत्यु की चिंता सताने लगी। तब किसी विद्वान ने सेठ से कहा कि यदि वह अपने पुत्र का विवाह ऐसी कन्या से करा दे जो मंगला गौरी का व्रत रखती हो। इसके फलस्वरूप कन्या के व्रत के फलस्वरूप उसके वर को दीर्घायु प्राप्त होगी। सेठ ने विद्वान की बात मानकर अपने पुत्र का विवाह ऐसी कन्या से ही किया, जो मंगला गौरी का विधिपूर्वक व्रत रखती थी। इसके परिणामस्वरूप चिरायु का अकाल मृत्युदोष स्वत: ही समाप्त हो गया और राजा का पुत्र नामानुसार चिरायु हो उठा।
इस तरह जो भी स्त्री या कुंवारी कन्या पूरे श्रद्धाभाव से मां मंगला गौरी का व्रत रखती हैं उनकी सभी मनोरथ पूर्ण होती हैं और उनके पति को दीर्घायु प्राप्त होती है।