शरद पूर्णिमा व्रत की कथा
विद्वान पंडितों ने बताया कि इसने पूर्णिमा के अधूरे व्रत किये हैं इसलिये इसके साथ ऐसा हो रहा है। तब ब्राह्मणों ने उसे व्रत की विधि बताई व अश्विन मास की पूर्णिमा का उपवास रखने का सुझाव दिया। इस बार उसने विधिपूर्वक व्रत रखा लेकिन इस बार संतान जन्म के पश्चात कुछ दिनों तक ही जीवित रही। उसने मृत शीशु को पीढ़े पर लिटाकर उस पर कपड़ा रख दिया और अपनी बहन को बुला लाई बैठने के लिये उसने वही पीढ़ा उसे दे दिया। बड़ी बहन पीढ़े पर बैठने ही वाली थी उसके कपड़े के छूते ही बच्चे के रोने की आवाज़ आने लगी। उसकी बड़ी बहन को बहुत आश्चर्य हुआ और कहा कि तू अपनी ही संतान को मारने का दोष मुझ पर लगाना चाहती थी। अगर इसे कुछ हो जाता तो। तब छोटी ने कहा कि यह तो पहले से मरा हुआ था आपके प्रताप से ही यह जीवित हुआ है। बस फिर क्या था। पूर्णिमा व्रत की शक्ति का महत्व पूरे नगर में फैल गया और नगर में पूर्णिमा का व्रत विधि विधान से करने का ढिढोर पिटवा दिया गया।

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