सकट चौथ व्रत कथा
पौराणिक कथानुसार, सतयुग में महाराजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक ऋषिशर्मा नामक तपस्वी ब्राह्मण रहता था। पुत्र के जन्म के बाद ब्राह्मण की मृत्यु हो गई। पुत्र का लालन-पालन उसकी पत्नी ने किया और विधवा ब्राह्मणी भिक्षा मांगकर अपने घर को चलती थी। उसी नगर में ही एक कुम्हार रहता था। वह मिट्टी के बर्तन बनाता था लेकिन उसके बर्तन हमेशा कच्चे रह जाते थे। जिसकी वजह से कुम्हार परेशान रहता था एक दिन उसने एक तांत्रिक से पूछा कि उसके बर्तन पकते क्यों नहीं हैं?
तब राजा ने अपने मंत्रियों को भेजा ताकि वह पता लगा सके कि यह पुत्र किसका और कहां से आया है? जब विधवा ब्राह्मणी को पता चला तो वह अपने पुत्र को लेने तुरंत पहुंच गई। राजा ने वृद्धा से पूछा कि ऐसा चमत्कार हुआ कैसे? तो वृद्धा ने बताया कि उसने सकट चौथ का व्रत रखा था और गणेश जी की पूजा-अर्चना की थी। इस व्रत के प्रभाव से उसके पुत्र के पुन: जीवनदान मिला है। तब से महिलाएं संतान और परिवार के सौभाग्य के लिए सकट चौथ का व्रत करने लगीं।वह खीर को निगल गईं। जिसकी वजह से वह गर्भवती हुईं और उन्होंने चैत्र मास की पुण्य तिथि पूर्णिमा को बजरंगबली को जन्म दिया। अजरअमर बजरंगबली भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त हुए और सदैव ब्रह्मचारी बने रहे।

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