वट सावित्री व्रत कथा
जब यमराज सत्यवान के जीवात्मा को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चलने लगे, पतिव्रता सावित्री भी उनके पीछे चलने लगी। आगे जाकर यमराज ने सावित्री से कहा, ‘हे पतिव्रता नारी! जहां तक मनुष्य साथ दे सकता है, तुमने अपने पति का साथ दे दिया। अब तुम लौट जाओ। इस पर सावित्री ने कहा, ‘जहां तक मेरे पति जाएंगे, वहां तक मुझे जाना चाहिए। यही सनातन सत्य है।’ यमराज सावित्री की वाणी सुनकर प्रसन्न हुए और उसे वर मांगने को कहा। सावित्री ने कहा, ‘मेरे सास-ससुर अंधे हैं, उन्हें नेत्र-ज्योति दें।’ यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर उसे लौट जाने को कहा और आगे बढ़ने लगे। किंतु सावित्री यम के पीछे ही चलती रही। यमराज ने प्रसन्न होकर पुन: वर मांगने को कहा। सावित्री ने वर मांगा, ‘मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य उन्हें वापस मिल जाए।’ यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर पुनः उसे लौट जाने को कहा, परंतु सावित्री अपनी बात पर अटल रही और वापस नहीं गयी। सावित्री की पति भक्ति देखकर यमराज पिघल गए और उन्होंने सावित्री से एक और वर मांगने के लिए कहा। तब सावित्री ने वर मांगा, ‘मैं सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हूं। कृपा कर आप मुझे यह वरदान दें।’ सावित्री की पति-भक्ति से प्रसन्न हो इस अंतिम वरदान को देते हुए यमराज ने सत्यवान की जीवात्मा को पाश से मुक्त कर दिया और अदृश्य हो गए। सावित्री जब उसी वट वृक्ष के पास आई तो उसने पाया कि वट वृक्ष के नीचे पड़े सत्यवान के मृत शरीर में जीवन का संचार हो रहा है। कुछ देर में सत्यवान उठकर बैठ गया। उधर सत्यवान के माता-पिता की आंखें भी ठीक हो गईं और उनका खोया हुआ राज्य भी वापस मिल गया।

अन्य मंत्र
- अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा
- अहोई अष्टमी व्रत कथा
- करवा चौथ व्रत कथा
- काल भैरव की पौराणिक कथा
- गुरु बृहस्पतिवार व्रत कथा
- गोवर्धन अन्नकूट पूजा व्रत कथा
- छठ व्रत कथा
- जितिया व्रत कथा
- नगुला चविथी व्रत कथा
- नरसिंह जयंती
- प्रदोष व्रत कथा
- बसंत पंचमी व्रत कथा
- बुधवार व्रत कथा
- भाई दूज व्रत कथा
- मंगलवार व्रत कथा
- महालक्ष्मी व्रत कथा
- मां मंगला गौरी व्रत कथा
- रविवार व्रत कथा
- रोहिणी व्रत कथा
- वट सावित्री व्रत कथा
- विनायक चतुर्थी व्रत कथा या संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
- शनिवार व्रत कथा
- शरद पूर्णिमा व्रत की कथा
- शुक्रवार व्रत कथा
- सकट चौथ व्रत कथा
- साईं बाबा व्रत कथा
- सोमवार व्रत कथा
- हनुमान जयंती व्रत कथा