पौराणिक कथानुसार, भगवान सूर्यदेव की पत्नी छाया थी उनकी कोख से यमराज और यमुना का जन्म हुआ था। लेकिन एक वक्त ऐसा आया जब छाया सूर्य का तेज सहन नहीं कर पाने की वजह से उत्तरी ध्रुव में रहने लगीं। छाया के साथ यमराज और यमुना भी रहने लगे। एक समय के बाद यमराज ने अपनी यमपुरी नगरी को बसा लिया औऱ यमुना गोलोक में निवास करने लगी। लेकिन दोनों में स्नेह सदैव बना रहा। यमुना अपने भाई यमराज को अपने घर इष्ट मित्रों सहित हमेशा भोजन के लिए आमंत्रित करती थी। लेकिन यमराज उन्हें टालते रहते थे। कार्तिक शुक्ल द्वितिया का दिन आया और यमुना ने फिर यमराज को अपने घर भोजन के लिए निमंत्रण दिया और इस बार अपने भाई से वचन ले लिया। यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं भला मुझे कोई अपने घर क्यों बुलाना चाहेंगा। यदि बहन ने इतने प्यार से बुलाया है तो मैं अपने धर्म का पालन करूंगा।
वहीं यमराज ने बहन के घर जाते वक्त नरक के सभी जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर देखकर यमुना खुशी से झूम उठी। उसने अपने भाई का स्वागत किया और उसके समक्ष अनेक व्यंजन परोसे। यमुना के इस आतिथ्य सत्कार से प्रसन्न होकर यमराज ने अपनी बहन से वरदान मांगने के लिए कहा। यमुना ने यमराज से कहा कि वह प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि में आप मेरे घर आया करें। साथ ही उन्होंने यह कहा कि उनकी तरह कोई भी बहन इस दिन यदि अपने भाई का विधिपूर्वक तिलक करे, तो उसे यमराज यानि मृत्यु का भय ना हो। यमराज ने मुस्कराते हुए तथास्तु कहा और यमुना को वरदान देकर यमलोक लौट आये। तब से लेकर आजतक हिन्दू धर्म में भाई दूज की परंपरा चली आ रही है।