हिरण्याकश्यप ने प्रह्लाद से कहा कि तुम अपने भगवान विष्णु को बुलाओ। इस पर प्रह्लाद ने कहा कि प्रभु सर्वत्र विद्यमान है और कण-कण में समाए हुए हैं। इस पर प्रह्लाद का उपहास उड़ाते हुए कहा कि इस स्तंभ में भी तुम्हारा विष्णु मौजूद है, तो प्रह्लाद ने कहा कि हां इसमें भी वह विद्यमान हैं। ये बात सुनकर हिरण्याकश्यप को क्रोध आ गया और उसने स्तंभ पर अपनी तलवार से वार किया। वार करते ही स्तंभ को चीरकर भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह प्रकट हुए। नरसिंह भगवान ने हिरण्याकश्यप को अपनी गोद में लिटाकर अपने नाखुन से उसका पेट चीर डाला। लेकिन इसके बाद भी नरसिंह भगवान का क्रोध शांत नहीं हुआ । उनके क्रोध को शांत करने के लिए सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तीनों देवता भगवान नरसिंह का क्रोध शांत कराने पहुंचे लेकिन उनका क्रोध शांत नहीं हुआ। यहां तक साक्षात भगवान शिव सामने आकर खड़े हो गए, लेकिन नरसिंह भगवान ने उन पर आक्रमण कर दिया। भगवान शंकर को क्रोध आ गया और उन्होंने एक विकराल वृषभ का रूप धारण कर लिया और नरसिंह को अपनी पूंछ में लपेटकर खींचकर पाताल में ले गए। काफी देर तक नरसिंह को जकड़कर रखा और नरसिंह ने अपनी सभी शक्तियों को इस्तेमाल किया लेकिन स्वतंत्र होने में असमर्थ रहे और शक्तिहीन हो गए। इसके बाद भगवान नरसिंह का क्रोध शांत हुआ।