योग के प्रकार की बात करें तो योग में कई तरह के अभ्यासों और तरीकों को शामिल किया गया है। योग का पहला प्रकार ज्ञान योग या दर्शनशास्त्र के नाम से जाना जाता है। ज्ञान योग में अध्ययन व अध्यापन पर जोर दिया जाता है। विशेषकर दर्शनशास्त्र पर, यह किसी भी क्षेत्र में हो सकता है। इसके बाद नंबर आता है भक्ति योग जिसे भक्ति-आनंद का पथ के नाम से भी जाना जाता है। 

कुंडलिनी चक्र

कुंडलिनी (Kundalini) चक्र, योग व आध्यात्म में काफी महत्व रखता है। इसे साध लेने के बाद जातक कई तरह की सिद्धियां प्राप्त कर लेता है। कुंडलिनी चक्र को साधना एक जटिल क्रिया है। इस लेख में हम कुंललिनी चक्र क्या है?, कुंडलिनी चक्र का महत्व क्या है?, कुंडलिनी प्रणाली में स्थिति सभी चक्रों हमारे शरीर में कहां स्थित हैं? और इन चक्रों को कैसे जगृत करें, इसके बारे में विस्तार से जानेंगे। तो आइये जानते हैं कुंडलिनी चक्र के बारे में –

कुंडलिनी चक्र क्या है?

सबसे पहले हम ये जान लेते हैं कि चक्र किसे कहते हैं तो चक्र  उसे कहा जाता है जिस केंद्र पर शुक्ष्म शरीर और स्थल शरीर एक दूसरे मिलते हैं। उस क्रेंद्र को चक्र कहा जाता है। वैसे तो शास्त्रों में उपलब्ध तथ्यों के अनुसार मानव शरीर में कई प्रकार के चक्र उपस्थित हैं, जिसका सीधा संबंध शरीर में एक आयाम से दूसरे आयाम की ओर गति से है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो यह एक त्रिकोण है। दरअसल मनुष्य के शरीर में कुल 114 चक्र हैं। आप इन चक्रों को नाड़ियों के संगम स्थान कह सकते हैं, जो हमेशा त्रिकोण आकृति में होते हैं। चक्र कुंडलिनी तंत्र की सुषुम्ना नाड़ी पर स्थित ऊर्जा का एक केंद्र है। सुषुम्ना नाड़ी पर मुख्यतः सात कुंडलिनी (Kundalini) चक्र होते हैं। ये सभी चक्र शरीर के विभिन्न अंगों तथा हमाके मन एवं बुद्धि के कार्य को ऊर्जा प्रदान करते हैं।

कुंडलिनी के सात चक्र

कुंडलिनी प्रणाली में कुल सात चक्र समाहित हैं। ये सभी चक्र मानव शरीर को सुचारु रूप से चलने में सहायता करते हैं और ऊर्जा प्रदान करते हैं। यदि इन चक्रों को साध लिया जाए तो मानव अपने जीवन व सभी प्राप्त कर सकता है, जो वह पाना चाहता है। इससे जातक को कई सिद्धियां मिलती है। साधक अपने आत्मा को साध लेता है, मोक्ष के सुख को भोग सकता है। तो आइये जानते है उन सात चक्रों के नाम, स्थान व उन्हें साधने की विधि –

सहस्रार चक्र

यह कुंडलिनी चक्र का पहला चक्र माना जाता है। सहस्रार चक्र की सहायता से हम शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक व सामाजिक समेत कई स्तरों में सामंजस्य बनाने में सफल होते हैं। यह चक्र मानव शरीर में शीर्ष पर स्थित है यानी की खोपड़ी के ऊपरी भाग में स्थित होती है। इस चक्र को मोक्ष का मार्ग भी कहा जाता है। इसको लगातार ध्यान करने से जागृत किया जा सकता है। इस चक्र को जागृत करने के लिए साधक को आहार और व्यवहार में शुद्धता और पवित्रता लाने की जरुरत होती है। साधक स्वयं की दिनचर्या में बदलाव करना पड़ता है उसे जल्दी उठना, जल्दी सोना, सात्विक आहार करना, प्राणायाम, धारणा और ध्यान करना जरूरी होता है।

आज्ञा चक्र

आज्ञा चक्र कुंडलिनी का दूसरा चक्र है। यह चक्र मानव शरीर में मुखार बिंदु पर दोनों भोहों के बीच स्थित होता है। यदि साधक इस चक्र को साध लें तो इस चक्र से साधक को अपार सिद्धिया और शक्तिया प्राप्त होती हैं। आज्ञा चक्र हमारे मानसिक स्थिरता व शांति को बनाए रखता है। यह मनुष्य के ज्ञान चक्षु को खोलता है। इस चक्र को जागृत करने के लिए साधक को अनुलोम-विलोम, सुखआसन, मकरासन और शवासन का अभ्यास करना चाहिए।

विशुद्ध चक्र

विशुद्ध चक्र तीसरा चक्र है। यह मानव शरीर में गर्दन में थायराइड ग्रंथि के ठीक पीछे स्थित है। बेसल मेटाबोलिक रेट को नियंत्रण में रखता है। पूरे शरीर को शुद्ध करता है। विशुद्ध चक्र को जागृत करने से 16 कलाओं का ज्ञान साधक को प्राप्त होता है। इससे साधक अपने भूक और प्यास को साध लेता है। इसे जागृत करने के लिए साधक को हलासन, सेतुबंध आसन, सर्वांगासन और उज्जाई प्राणायाम का नियमित करना होता है।

अनाहत चक्र

अनाहत चक्र कुंडलिनी (Kundalini) प्रणाली का चौथा चक्र है। यह मानव शरीर में वछ स्थल के मध्य भाग में स्थित होता है। यह हमारे ह्रदय और फेफड़ों को सफाई करने के साथ इनके कार्य क्षमता को बढ़ाता है। इस चक्र को साधने के लिए कपट, हिंसा, अविवेक, चिंता, मोह, भय जैसे भाव से साधक को दूर रहना होता हैं। इसके साथ ही साधक प्रेम और संवेदनशील होना चाहिए। अनाहत चक्र को जागृत करने के लिए साधक को उष्ट्रासन, भुजंगासन, अर्द्धचक्रासन और भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए।

मणिपुर चक्र

मणिपुर चक्र कुंडलिनी तंत्र का पांचवां चक्र है। यह चक्र मानव शरीर में ठीक नाभी के पीछे स्थित होता है। यह स्थान मानव शरीर का विशेष बिंदु है। इस बिंदु पर जो साधक अपनी ऊर्जा एकत्रित करने में कामयाब होता है। वे कर्मयोगी कहलाते हैं। यह चक्र मानव के पाचक व अंतः स्त्रावी ग्रंथि से जुड़ा है। यह पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है। मणिपुर चक्र जागृत करने के लिए साधक पवनमुक्तासन, मंडूकासन, मुक्तासन, भस्त्रिका का अभ्यास कर सकता है। कपालभाति प्राणायाम रोजाना 10 से 15 मिनट करें।

स्वाधिष्ठान चक्र

स्वाधिष्ठान चक्र का स्थान सात चक्रों में छठे स्थान पर है। यह चक्र मानव शरीर में रीढ़ में पेशाब की थैली के ठीक पीछे स्थित है। यह चक्र मानव के भ्रमण प्रवृत्ति को प्रभावित करता है। स्वाधिष्ठान चक्र अनुवांशिक, यूरिनरी और प्रजनन प्रणाली पर नजर रखने के साथ ही जरूरी हारमोंस के स्त्राव को भी नियंत्रित करता है। इस चक्र के जागृत होने से साधक में क्रूरता, अविश्वास, आलस, प्रमाद जैसे दुर्गुणों का नाश होता है। स्वाधिष्ठान चक्र को साधने के लिए जानूशीर्षासन और मंडूकासन साथ कपालभाति का अभ्यास रोजाना10 से 15 मिनट के लिए करें।

मूलाधार चक्र

कुंडलिनी (Kundalini) चक्र का सातवाँ व आख़िरी चक्र है मूलाधार चक्र। यह चक्र शरीर के दाएं और बाएं हिस्से में संतुलन स्थापित करने में सहयोग करता है। इसके साथ ही यह हमारे अंगों का शोधन करने का काम करता है। यह पुरुषों में वृषण और महिलाओं में डिम्बग्रंथि की कार्य प्रणाली को सुचारु रखता है। मूलाधार चक्र मानव शरीर में मेरुदंड की अंतिम हड्डी या गुदाद्वार के मुख्य के पास स्थित होता है। इस चक्र को जागृत करने के लिए मानव को स्वस्तिकासन, पश्चिमोत्तानासन जैसे आसन और कपालभाती प्राणायाम करना चाहिए। इसके साथ ही इसे भोग, निद्रा और सम्भोग पर काबू रखने से जागृत किया जा सकता है।

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