गया का इतिहास
गया (Gaya) का विस्तृत वर्णन रामायण में मिलता है। इतिहासकारों की माने तो गया मौर्य शासनकाल में एक महत्वपूर्ण नगर था। भारतीय पुरातत्व विभाग को इस क्षेत्र में खुदाई के दौरान सम्राट अशोक के शासनकाल से संबंधित एक आदेश पत्र मिला है। मध्यकाल में यह शहर मुगल सम्राटों के अधीन था। उसी समय यहां के कुछ क्षेत्रों पर राजपूतों का अधिकार था। जिनमें सिरमौर और राठौर राजपूत वंश प्रमुख थे।
गया का पौराणिक महत्व
हिंदू धर्म पुराणों के अनुसार गया में एक राक्षस हुआ जिसका नाम गयासुर था। गयासुर ने तपस्या कर एक विचित्र वरदान प्राप्त किया। वरदान यह था कि जो जीव उसे देखेगा या उसे स्पर्श करेगा वह यमलोक नहीं अपितु विष्णुलोक जाएगा। इस वरदान के कारण यमलोक रिक्त होने लगा। इससे परेशान होकर यमदेव त्रिदेव के पास पहुंचे। यमदेव ने ब्रह्मा, विष्णु और शिव से कहा कि गयासुर के वरदान के कारण अब पापी व्यक्ति भी बैकुंठ जाने लगा है, जिससे न्याय चक्र में बाधा उत्पन्न हो रही है। यह संसार के लिए उचित नहीं है। इसलिए कोई उपाय कीजिए। तब ब्रह्मा जी गयासुर के पास पहुंचे। ब्रह्मा को देख गयासुर उन्हें प्रणाम कर आने का प्रयोजन पूछा, तब ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम परम पवित्र हो इसलिए देवता आपकी पीठ पर यज्ञ करना चाहते हैं। गयासुर इसके लिए तैयार हो गया। जिसके बाद गयासुर की पीठ पर सभी देवताओं समेत भगवान विष्णु सवार हो गएं। गयासुर के शरीर को स्थिर रखने के लिए उसकी पीठ पर एक बड़ा सा पत्थर भी रखा गया। जो वर्तमान में प्रेत शिला के नाम से जाना जाता है। गयासुर के इस समर्पण से भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि यह स्थान जहां तुम्हारे शरीर पर यज्ञ हुआ है वह कालांतर में गया के नाम से जाना जाएगा। यहां पर पिंडदान और श्राद्ध करने वालों को पुण्य और पिंडदान प्राप्त करने वाले को मुक्ति मिलेगी। यहां आकर आत्मा को भटकना नहीं पड़ेगा। बल्कि वह सीधे बैकुंठ धाम जाएगा।
गया के दर्शनीय स्थल
गया (Gaya) में सबसे दर्शनीय स्थान विष्णुपद मंदिर है जिससे गया का मूल अस्तित्व जुड़ा हुआ है। इसके अलावा गया के आस-पास कई मंदिर हैं जो दर्शनीय हैं जिनमें बालेश्वरनाथ शिव मंदिर, कोटेश्वरनाथ मंदिर, सूर्य मंदिर और ब्रह्मयोनि पर्वत प्रमुख दर्शनीय स्थलों में शामिल हैं।
विष्णुपद मंदिर
फल्गु नदी के पश्चिमी तट पर स्थित विष्णुपद मंदिर का निर्माण 1787 में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई ने करवाया था। यह मंदिर पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान विष्णु के पद चिन्ह पर किया गया है। यह भव्य मंदिर आठ स्तम्भों पर खड़ा है। इन स्तम्भों पर चांदी की परतें चढ़ाई हुई हैं।
बालेश्वर नाथ शिव मंदिर
गया शहर से 35 किलोमीटर पूर्व में चोवार नामक गांव है। इस गांव में प्राचीन शिव मंदिर बालेश्वर नाथ स्थित है। मंदिर की खास बात ये है कि बाबा बालेश्वर नाथ पर अभिषेक के लिए रोजाना हजारों श्रद्धालु दूध चढ़ाते हैं लेकिन चढ़ाया गया दूध कहां चला जाता है ये आज तक किसी को पता नहीं चल सका है। इसी मंदिर के निकट एक ताड़ का पेड़ मौजूद है जिसे भगवान शिव का त्रिशूल माना जाता है।
कोटेश्वरनाथ मंदिर
यह भी अति प्राचीन शिव मंदिर है जो गया के बेलागंज के मेव गांव में स्थित है। हर साल शिवरात्रि में यहां मेला लगता है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण बाणासुर की बेटी उषा ने करवाया था। जो भगवान शिव की भक्त थीं।
सूर्य मंदिर
गया (Gaya) में एक प्रसिद्ध सूर्य मंदिर भी है जो विष्णुपद मंदिर से 20 किलोमीटर दूर उत्तर में स्थित है। भगवान सूर्य को समर्पित यह मंदिर सोन नदी के तट पर स्थित है। दीपावली के छः दिन बाद बिहार के लोकप्रिय पर्व छठ के अवसर पर यहां तीर्थयात्रियों की भारी भीड़ उमड़ती है। इस अवसर पर यहां भव्य मेला आयोजित किया जाता है।
कैसे पहुंचे गया
गया सड़क, रेल और वायु मार्ग द्वारा पूरे भारत से जुड़ा हुआ है। यहां श्रद्धालु सुगमता से पहुंच सकते हैं।
वायु मार्ग
यहां सबसे नजदीकी एयरपोर्ट गया में ही है। यहां कोलकाता से नियमित उड़ानें उपलब्ध हैं।
रेल मार्ग
गया में रेलवे स्टेशन है जो देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है। दिल्ली और कोलकाता से गया के लिए नियमित रेल सेवाएं उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग
गया सड़क मार्ग के जरिए देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा है। पटना पहुंचकर आप कैब या बस से गया जा सकते हैं। पटना से गया पहुंचने में करीब 3 घंटे का समय लगता है। वाराणसी व पटना से गया के लिए नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं।