हर धार्मिक स्थान से कई रोचक कहानियां एवं जानकारियां जुड़ी हैं। हमारा उद्देश्य यही है कि हम अपने पाठकों तक इस तरह की महत्वपूर्ण जानकारियां पंहुचा सकें। हमारे इस खंड में आप भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के बारे में जान सकेंगें।

हरिद्वार

देवभूमि उत्तराखण्ड का पवित्र नगर हरिद्वार (Haridwar) हिंदूओं के प्रमुख तीर्थ स्थानों में से एक है। यह बहुत ही प्राचीन और पौराणिक महत्व रखने वाला नगर है। हरिद्वार हिंदूओं के सात पवित्र तीर्थं स्थलों में से एक है। समुद्र तल से 3139 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अपने स्रोत गोमुख गंगोत्री हिमनद से 253 किमी की यात्रा कर मां गंगा हरिद्वार के मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती हैं, इसलिए हरिद्वार को ‘गंगाद्वार’ के नाम से भी जाना जाता है। इस लेख में हम हरिद्वार का पौराणिक इतिहास क्या है, यहां के दर्शनीय स्थल कौन-कौन से हैं इस बारे में जानेंगे।

अन्य धार्मिक स्थल

हरिद्वार का पौराणिक इतिहास

हरिद्वार तीर्थ के रूप में अति प्राचीन है परंतु नगर के रूप में यह ज्यादा प्राचीन नहीं है। हरिद्वार नाम भी उत्तर पौराणिक काल में ही प्रचलित हुआ है। महाभारत काल में इसे केवल गंगाद्वार कहा गया है। हिंदू पुराणों में हरिद्वार को गंगाद्वार, मायाक्षेत्र, मायातीर्थ, सप्तस्रोत तथा कुब्जाम्रक के नाम से उल्लेखित किया गया है। माना जाता है कि यहां कपिल मुनि का तपोवन था।

हरिद्वार में दर्शनीय स्थल

हरिद्वार में हर की पौड़ी सबसे दर्शनीय स्थानों में शामिल है। इसके अतिरिक्त यहां चंड़ी देवी मंदिर, मनसा देवी मंदिर, सप्तऋषि आश्रम, गायत्री शक्तिपीठ दर्शनीय स्थान हैं।

हर की पौड़ी
मान्यता है कि राजा विक्रमादित्य के भाई भर्तृहरि ने यहीं पर तपस्या कर अमर पद प्राप्त किया था। भर्तृहरि की स्मृति में राजा विक्रमादित्य ने यहां कुण्ड तथा पैड़ियाँ बनवायी थीं। इनका नाम ‘हरि की पैड़ी’ इसी कारण पड़ा। यही ‘हरि की पैड़ी’ से बोल चाल में ‘हर की पौड़ी’ हो गया है। हर की पौड़ी हरिद्वार (Haridwar) के मुख्य स्थानों में से एक है। मुख्यतः यहीं स्नान करने के लिए लोग आते हैं। एक अन्य प्रचलित मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु यहां आये थे। इस स्थान पर भगवान विष्णु के पैर पड़ने के कारण इस स्थान को ‘हरि की पैड़ी’ कहा गया जो बोल चाल में ‘हर की पौड़ी’ बन गया है। इसे हरिद्वार का हृदय-स्थली भी माना जाता है।

चंड़ी देवी मंदिर
माता चंड़ी देवी का यह सुप्रसिद्ध मंदिर गंगा नदी के पूर्वी तट पर शिवालिक श्रेणी के नील पर्वत के शिखर पर स्थित है। यह मंदिर कश्मीर के राजा सुचत सिंह द्वारा 1929 में बनवाया गया था। स्कंद पुराण की एक कथा के अनुसार, राक्षस राजाओं शुम्भ-निशुम्भ के सेनानायक चण्ड-मुण्ड का संहार देवी चंड़ी ने यहीं पर किया था; जिसके बाद इस स्थान का नाम चंड़ी देवी पड़ गया।

मनसा देवी मंदिर
हर की पैड़ी से पश्चिम की ओर शिवालिक श्रेणी के एक पर्वत शिखर पर मनसा देवी का मंदिर स्थित है। मनसा देवी का शाब्दिक अर्थ है वह देवी जो मन की इच्छा पूर्ण करती हैं। मुख्य मंदिर में दो प्रतिमाएं हैं, पहली मूर्ति तीन मुखों व पांच भुजाओं के साथ जबकि दूसरी मूर्ति आठ भुजाओं के साथ विराजमान है। मनसा देवी के मंदिर तक जाने के लिए यू तो रोप वे ट्राली की सुविधा है। इसके अतिरिक्त मनसा देवी मंदिर तक जाने हेतु पैदल मार्ग भी बिल्कुल सुगम है।

सप्तर्षि आश्रम/ सप्त सरोवर
यहां पहुंचने पर सड़क की दाहिनी ओर सप्त धाराओं में बंटी मां गंगा की निराली प्राकृतिक छवि दर्शनीय है। कहा जाता है कि यहां सप्तर्षियों ने तपस्या की थी और उनके तप में बाधा न पहुंचे इसे ध्यान में रखकर मां गंगा सात धाराओं में बंटकर उनके आगे से बह गयी थीं। गंगा की छोटी-छोटी प्राकृतिक धारा की शोभा बाढ़ में पहाड़ से टूट कर आये पत्थरों के असंख्य टुकड़ों के रूप में दर्शनीय है। सड़क की दूसरी ओर सप्तर्षि आश्रम का निर्माण किया गया है। यहां मुख्य मंदिर भगवान शिव का है।

शान्तिकुंज/ गायत्री शक्तिपीठ
सुप्रसिद्ध मनीषी श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा स्थापित गायत्री परिवार का मुख्य केन्द्र ‘शांतिकुंज’ हरिद्वार से ऋषिकेश जाने के मार्ग पर स्थित है। शान्तिकुंज विशाल परिक्षेत्र में एक-दूसरे से जुड़े अनेक उपखंडों में बंटा आधुनिक युग में धार्मिक-आध्यात्मिक गतिविधियों का कार्यस्थल है। यहां का सुचिंतित निर्माण तथा अन्यतम व्यवस्था सभी श्रेणी के दर्शकों-पर्यटकों के मन को निश्चित रूप से मोहित करता है।

हरिद्वार कैसे पहुंचा जा सकता है?
हरिद्वार यात्रीगण तीनों माध्यमों से पहुंच सकते हैं। यह नगर परिवहन के तीनों माध्यमों से अच्छी तरह डुड़ा हुआ है।

वायु मार्ग
हरिद्वार (Haridwar) से निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट एयपोर्ट, देहरादून में स्थित है। लेकिन यहां जाने के लिए श्रद्धालुओं द्वारा नई दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को अधिक प्राथमिकता दी जाती है।

रेल मार्ग
भारतीय रेल ने इस नगर के धार्मिक महत्व को ध्यान में रखते हुए हरिद्वार में ही रेल्वे स्टेशन का निर्माण करवाया है जो भारत के सभी प्रमुख नगरों को हरिद्वार से जोड़ता है।

सड़क मार्ग
हरिद्वार (Haridwar) अच्छी तरह सड़क मार्ग से जुड़ा है। जिससे आसानी से हरिद्वार पहुंचा जा सकता है।