हर धार्मिक स्थान से कई रोचक कहानियां एवं जानकारियां जुड़ी हैं। हमारा उद्देश्य यही है कि हम अपने पाठकों तक इस तरह की महत्वपूर्ण जानकारियां पंहुचा सकें। हमारे इस खंड में आप भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के बारे में जान सकेंगें।

वाराणसी

आदिकाल में वाराणसी (Varanasi) काशी के नाम से जाना जाता था। आज भी काशी से वाराणसी को जोड़कर संबोधित किया जाता है। यह नगरी सानातन धर्म के प्रमुख धार्मिक स्थानों में से एक है। काशी वाराणसी का मूल संबंध भगवान शिव से है। वाराणसी में विद्धमान काशी विश्वनाथ मंदिर जग प्रसिद्ध है। पवित्र गंगा की अविरल धारा यहीं से होकर बहती है, जहां करोड़ों भक्त आस्था की डुबकी लगाते हैं। कहा जाता है कि इस नगर की रक्षा काल भैरव करते हैं और इन्हें यहां का कोतवाल माना जाता है। वाराणसी में कई घाट हैं जिनका अपना पौराणिक महत्व है। आगे हम प्राचीन नगर वाराणसी का क्या इतिहास है, यहां कौन- कौन से दर्शनीय स्थान हैं, इस बारे में जानेंगे।

अन्य धार्मिक स्थल

उज्जैन का पौराणिक महत्व

उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना से संबंधित कई कथाएं प्रचलित हैं जिनमें से एक हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं। प्रचलित कथा के अनुसार अवंती नगरी (उज्जैन) में वेदप्रिय नामक ब्राह्मण रहा करते थे। वे अपने घर में शिवलिंग की स्थापना कर उसकी शास्त्र विधि से पूजा करते थे। ब्राह्मण के चार पुत्र थे देवप्रिय, प्रियमेध, संस्कृत और सुव्रत। ये चारों पुत्र तेजस्वी और आज्ञाकारी थे। उसी समय दूषण नामक एक असुर ने भगवान ब्रह्मा से अजेय होने का वरदान प्राप्त कर लिया। दूषण सभी लोगों पर अत्याचार करने लगा और अपनी सारी सेना लेकर उज्जैन (Ujjain) पहुंचा। जहां उसने ब्राह्मणों को खूब यातनायें दी। इतना सब होने पर भी वे चार ब्राह्मण बंधु भयभीत ना हुए और शिव जी की पूजा करते रहें। यह देख दूषण ने उन चारों भाईयों को मारने के लिए तलवार उठा ली, जैसे ही असुर उन्हें मारने के लिए आगे बढ़ा, वैसे ही भगवान शिव प्रकट हुए। शिव जी ने असुर दूषण से कहा कि मैं तुम्हारे विनाश के लिए काल के रूप में प्रकट हुआ हूँ। इस प्रकार महाकाल ने अपने हुंकार मात्र से ही असुर का अंत कर दिया। इसके बाद भगवान शिव उन चारों पर अति प्रसन्न होकर बोले कि मनचाहा वर मांगो। उन चारों ने बोला कि आप हमें मोक्ष प्रदान करें और लोगों की रक्षा के लिए यहां सदा के लिए विराजमान हो जाएं। तब भगवान शिव उज्जैन में एक शिवलिंग के रूप में विराजमान हो गए। आज हम इस शिवलिंग को महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं।

वाराणसी का इतिहास

उत्तरप्रदेश राज्य में वाराणसी एक जनपद है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, काशी नगर की स्थापना भगवान शिव ने की थी और वे यहां काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में मौजूद हैं। इसी के कारण आज वाराणसी एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। इस नगर का विस्तृत वर्णन स्कन्द पुराण, रामायण, महाभारत एवं प्राचीनतम वेद ऋग्वेद सहित कई हिंदू धर्मग्रन्थों में मिलता है। आमतौर पर वाराणसी शहर को लगभग 3000 वर्ष पुराना माना जाता है। लेकिन हिंदू मान्यताओं के अनुसार काशी इससे भी अधिक प्राचीन नगर है। यह नगर एक समय में मलमल, रेशमी कपड़ों और शिल्प कला के लिये व्यापारिक एवं औद्योगिक केन्द्र था। आज भी यहां की बनारसी साड़ी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। गौतम बुद्ध के काल में वाराणसी (Varanasi) काशी राज्य की राजधानी हुआ करती थी।

सप्त पुरियों में काशी वाराणसी
काशी हिंदुओं के पवित्र सप्त पुरियों में से एक है। हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में काशी वाराणसी को मोक्षदायी सात पुरियों में से एक बताया गया है। मान्यता है कि कोई भी जीव यदि अपना शरीर यहां त्यागता है तो वह जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। एक श्लोक में इस बात को बतलाया गया है।

अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः ॥
अर्थात अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम, उज्जैन, और द्वारका – ये सात मोक्षदायी पुरी हैं। इन पुरियों में से किसी एक में भी जीव प्राण त्यागता है तो उसे मोक्ष प्राप्त होता है।

वाराणसी के दर्शनीय स्थल
काशी वाराणसी का सबसे लोकप्रिय मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर है। जो 17वीं शताब्दी में दोबारा बनाया गया। इसके अतिरिक्त यहां काल भैरव मंदिर है जो इस प्राचीन नगर के कोतवाल का है। वाराणसी (Varanasi) का दुर्गा मंदिर, विशालाक्षी मंदिर और व्यास मंदिर भी दर्शनीय हैं। इस नगर को घाटों का शहर भी कहा जाता है। यहां के दर्शनीय घाटों में दशाश्वमेध घाट तथा असी घाट मुख्य हैं।

काशी विश्वनाथ मंदिर
काशी विश्वनाथ मंदिर को स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर में बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण सन 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्करद ने करवाया था। यह प्रसिद्ध मंदिर गंगा नदी के दशाश्वमेध घाट के करीब स्थित है।

काल भैरव मंदिर
काल भैरव को काशी का संरक्षक कहा जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने काल भैरव को इस नगर की रक्षा करने हेतु नियुक्त किया है। इसके अलावा काल भैरव को यहीं ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति प्राप्त हुई थी। महादेव ने काल भैरव को यहीं रहकर नगर की रक्षा करने का आदेश दिया। जिसके बाद से काल भैरव नगर की सुरक्षा का जिम्मा संभाल रहे हैं। आगे चलकर इस मंदिर का निर्माण किया गया।

शक्तिपीठ विशालाक्षी
शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ विशालाक्षी मंदिर यहां स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां भगवती सती के कान की मणिकर्णिका गिरी थी। इसी के चलते वाराणसी के एक घाट का नाम मणिकर्णिका घाट पड़ा।

दुर्गा मंदिर
दुर्गा मंदिर, जिसे वाराणसी में मंकी टेम्पल के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में किया गया था। यहां बड़ी संख्या में बंदरों की उपस्थिति के कारण इसे मंकी टेम्पल कहा जाता है। लोक मान्यता के अनुसार मंदिर में स्थापित देवी दुर्गा की प्रतिमा मानव निर्मित नहीं बल्कि मंदिर में स्वतः ही प्रकट हुई थी।

दशाश्वमेध घाट
यह काशी विश्वनाथ मंदिर के करीब स्थित है और वाराणसी के सबसे शानदार घाटों में से एक है। इससे संबंधित दो पौराणिक कथाएं हैं, एक के अनुसार ब्रह्मा जी ने इस घाट का निर्माण भगवान शिव के स्वागत हेतु किया था। दूसरी कथा के अनुसार ब्रह्मा जी ने यहां दस अश्वमेध यज्ञ किये थे। प्रत्येक संध्या यहां मां गंगा की भी भव्य आरती की जाती है।

असी घाट
असी घाट का निर्माण असी नदी के तट पर संगम के निकट किया गया है। इस सुंदर घाट पर स्थानीय उत्सव एवं खेलों का आयोजन होता रहता है। ये घाटों की कतार में अंतिम घाट है। यह घाट पेंटिंग करने वालों और फोटोग्राफरों का मन पसंद स्थान है।

वाराणसी कैसे पहुंचे
वाराणसी श्रद्धालु वायु, रेल तथा सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं। जिसके संबंध में यहां जानकारी दी जा रही है।

वायु मार्ग
वाराणसी (Varanasi) का लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट शहर से 25 किमी की दूर स्थित है। जो चेन्नई, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, खजुराहो और बंगलुरु जैसे देश के अन्य शहरों से वायु मार्ग के जरिए जुड़ा हुआ है।

रेल मार्ग
उत्तर रेलवे के अधीन वाराणसी जंक्शन एवं पूर्व मध्य रेलवे के अधीन मुगलसराय जंक्शन नगर की सीमा के भीतर दो प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं। इनके अलावा नगर में 16 अन्य छोटे-बड़े रेलवे स्टेशन हैं।

सड़क मार्ग
ग्रैंड ट्रंक रोड वाराणसी से होकर निकलता है। यह सड़क देश के कई राज्यों को वाराणसी से जोड़ता है। इसके अलावा एनएच 19, 28, 31, 35 वाराणसी को कई अन्य शहरों से जोड़ता है।