हर धार्मिक स्थान से कई रोचक कहानियां एवं जानकारियां जुड़ी हैं। हमारा उद्देश्य यही है कि हम अपने पाठकों तक इस तरह की महत्वपूर्ण जानकारियां पंहुचा सकें। हमारे इस खंड में आप भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के बारे में जान सकेंगें।

वृंदावन

मथुरा से करीब 15 किमी दूर स्थित वृंदावन (Vrindavan) एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थान है। इसी स्थान पर गिरधर ने राधा संग रास रचाया था। इस नगर की गलियां गोपाल की कई लीलाओं की साक्ष्य रही हैं। वृंदावन का रज माथे पर लगाने मात्र से व्यक्ति का जीवन धन्य हो जाता है। वृंदावन को मथुरा का जुड़वां शहर कहा जाता है। क्योंकि दोनों ही स्थानों में श्री कृष्ण कण-कण में मौजूद हैं। वृंदावन में लगभग 5000 हजार मंदिर हैं। सभी मंदिरों का अपनी एक कहानी है। आगे हम इन्हीं मंदिरों में से कुछ विशेष मंदिरों के बारे में और बांके बिहारी के संबंध में एक प्रचलित कथा के बारे में जानेंगे।

अन्य धार्मिक स्थल

बांके बिहारी की कथा

वैसे तो नंद के गोपाल की कई कथाएं प्रचलित हैं उनमें से एक हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं। एक समय में ठाकुर भूपेंद्र सिंह नाम के एक राजा थे। जिनकी भरतपुर के पास एक रियासत थी। ठाकुर ने अपना पूरा जीवन भोग विलास में बिताया। धर्म के नाम पर ये कभी रामायण की कथा तो कभी भागवत कथा करवाते और इसी को ये धर्म समझते थे। झूठी शान और शौकत का दिखावा करने वाले ठाकुर भूपेंदर सिंह की पत्नी भगवान श्री कृष्ण में विश्‍वास रखती थीं और प्रति वर्ष वृंदावन जा कर श्री बांके बिहारी की पूजा करती थीं। एक बार ठाकुर की पत्नी ने बांके बिहारी के लिए सुंदर वस्त्रों का निर्माण करवाया, जिसके बारे में ठाकुर को पता चल गया। ठाकुर उस वस्त्र को गायब करवाना चाहते थे, एक दिन मौका पाकर ठाकुर ने गिरधर के लिए बने वस्त्रों को गायब करवा दिया। जिसके बारे में ठाकुर की पत्नी को पता नहीं चला और वह वृंदावन में उस वस्त्र का इंतजार करने लगीं। ठाकुर ने यह खबर अपनी पत्नी को वृंदावन जा कर देना चाहते थे। जब ठाकुर वृंदावन पहुंचे तो उनकी पत्नी उनका हाथ थाम कर उन्हें बांके बिहारी के सामने ले गईं। ठाकुर जैसे ही बांके बिहारी के सामने पहुंचे, वे देखते हैं कि बांके बिहारी ने वही वस्त्र पहन रखे हैं जिसे ठाकुर ने गायब करवाया था। यह देख ठाकुर हैरान परेशान हो जाते हैं। ठाकुर को पत्नी ने बताया कि इस वस्त्र को बीते रात उनके पुत्र यहां लेकर आएं थे और देकर वापस लौट गएं। यह सुन कर ठाकुर का दिमाग खराब हो गया। रात को बांके बिहारी ठाकुर के सपने में आएं और ठाकुर से कहते हैं, क्‍यों हैरान हो गए कि वस्त्र मुझ तक कैसे पहुंचा। गिरधर बोले कि इस दुनिया में जिसे मुझ तक आना है उसे दुनिया की कोई ताकत रोक नहीं सकती। वस्त्र क्‍या तू खुद को देख, तू भी वृंदावन आ गया। यह बात सुन ठाकुर की नींद खुल जाती है। उसी क्षण से ठाकुर बांके बिहारी की भक्ति में लीन हो जाते हैं।

वृंदावन के दर्शनीय स्थल

वृदावन के दर्शनीय स्थलों में बांके बिहारी मंदिर, श्री राधा रमण मंदिर, रंगाजी मंदिर और गोविंददेव मंदिर प्रमुख हैं। जिनके बारे में हम आगे जानकारी दे रहे हैं।

बांके बिहारी मंदिर
बांके बिहारी मंदिर वृंदावन (Vrindavan) के लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। बांके का अर्थ होता है तीन कोणों पर मुड़ा हुआ, जो वास्तव में बांसुरी बजाते भगवान कृष्ण की ही एक मुद्रा है। इसी मुद्रा में मुरलीधर मंदिर में उपस्थित हैं। मंदिर का निर्माण सन 1860 में हुआ था। मंदिर की वास्तुकाल राजस्थानी है। जो निहारते ही बनती है। माना जाता है कि बांके बिहारी की इस छवि को स्वामी हरिदास जी ने निधि वन में खोजा था। स्वामी हरिदास जी भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे और उनका संबंध निम्बर्क पंथ से था। इस मंदिर का 1921 में स्वामी हरिदास जी के अनुयायियों के द्वारा पुनर्निर्माण कराया गया।

श्री राधा रमण मंदिर
श्री राधा रमण मंदिर निधि वन के पास है। मंदिर का निर्माण गोपाल भट्ट गोस्वामी के निवेदन पर सन 1542 में किया गया था। श्रद्धा व भक्ति के अलावा शिल्पकला के लिहाज से भी यह मंदिर वृंदावन के उत्कृष्ट मंदिरों में से एक है। श्री राधा रमण मंदिर का गौड़िया वैष्णव पंथ में खासा महत्व है। इस मंदिर में राधा के साथ सबसे छोटे रूप में श्री कृष्ण की पूजा होती है।

रंगाजी मंदिर
यह मंदिर भगवान रंगनाथ या रंगाजी को समर्पित है। जो सन 1851 में बनकर तैयार हुआ था। इस मंदिर का प्रवेश द्वार राजपूत शैली का है। यह मंदिर शेषनाग की शैया पर आराम करते भगवान विष्णु के स्वरूप को सामने लाता है। मंदिर के प्रांगण में तालाब और नयनाभिराम बगीचा है। यह मंदिर मार्च व अप्रैल माह में होने वाले ब्रह्मोत्सव के लिए भी प्रसिद्ध है। स्थानीय लोगों में इसे रथ मेला के नाम से जाना जाता है। यह मेला दस दिन तक चलता है।

गोविंद देव मंदिर
गोविंद देव मंदिर वृंदावन के पवित्र स्थलों में एक अलग अहमियत रखता है। इसका निर्माण आमेर के राजा मान सिंह ने 1590 में कराया था। यह मंदिर अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर की वास्तुकला पारंपरिक मंदिरों से अलग है। यह मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है, जिस कारण मुख्य कक्ष में प्रवेश करने के लिए सीढ़ियों का इस्तेमाल करना पड़ता है। कहा जाता है कि औरंगज़ेब के शासनकाल में यह मंदिर लूट लिया गया था।

कैसे पहुंचे वृंदावन
यहां पहुंचने के लिए आप यातायात के तीनों माध्यमों का उपयोग कर सकते हैं।

वायु मार्ग
मथुरा से सबसे करीबी एयरपोर्ट आगरा का है। आगरा से वृंदावन की दूरी 65 किमी है। इसके अतिरिक्त इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा नई दिल्ली है। जहां से मथुरा जाने के लिए आसानी से साधन उपलब्ध हैं। यहां से वृंदावन की दूरी 150 किलो मीटर है।

रेल मार्ग
वृंदावन में कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन मथुरा में है जो वृंदावन से 10 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। मथुरा कैंट और मथुरा जंक्शन के लिए नियमित ट्रेनें चलती हैं। स्टेशन पहुंचने के बाद आप टैक्सी या मोटर-रिक्शा से वृंदावन (Vrindavan) धाम पहुंच सकते हैं।

सड़क मार्ग
वृंदावन आप देश के किसी भी शहर से सड़क मार्ग के जरिए आराम से पहुंच सकते हैं। इसके अलावा राज्य परिवहन द्वारा यहां के लिए कई बसें चलाई जाती हैं।