भारतीय विद्वान इस सभ्यता को अनादि परंपरा से उत्पन्न हुआ मानते हैं। परंतु पश्चिमी विद्वानों का मत है कि आर्यों का एक समुदाय भारत वर्ष में कहीं और से लगभग 1500 ईसा पूर्व आया और इनके आने के बाद इस सभ्यता की नींव पड़ी। हालाँकि भारत मे आर्यो के आने का प्रमाण अभी तक न ही किसी पुरातत्त्व खोज में और न ही किसी डी एन ए अनुसंधानों में मिला है।

हवन

हिंदु धर्म के अनुसार किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को पूरा करने के लिए हवन करना बहुत आवश्यक है। हवन क्रिया के बिना कोई भी धार्मिक कर्मकांड पूर्ण नही माना जाता। जिस प्रकार नवरात्रों में नौ देवियों की पूजा का महत्व है वैसे ही धार्मिक अनुष्ठानों में हवन का महत्व होता है। हवन को यज्ञ के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें कई प्रकार की लकड़ियों से अग्नि प्रवज्जलित करके, घी और अन्य कई प्रकार की सामग्रीयों की आहुति दी जाती है। इस प्रक्रिया के दौरान विदवान पंडितो और महात्माओं द्वारा संस्कृत में श्लोक उच्चारण किए जाते हैं। हवन यानि यज्ञ के क्या क्या महत्व होते हैं, इसी के बारे में हम जानने की कोशिश करेगें।

हवन का धार्मिक महत्व

हिंदु धर्म में सदियों से ही हवन क्रियां की महत्ता का वर्णन किया गया हैं। सदा से ही भारत ऋषि मुनियों की धरती रही है और ऋषि मुनियों द्वारा यज्ञ हवन करने की प्रक्रियायों का जिक्र हमारे सभी पुराणों में किया गया है। हवन के दौरान कुंड में अग्नि के माध्यम से देवताओं को अपनी ईच्छा और कामना बताई जाती है। हवन कुंड अग्नि के द्वारा देवताओं को हवि पहुंचाने की प्रक्रियां को ही हवन कहा जाता है। हवि वह सामग्री होती है जिसकी हवन के दौरान अग्नि में आहुति दी जाती है। हवन प्रक्रियां में अग्नि प्रज्जवलित करने के लिए मुख्य तौर पर पीपल की सुखी लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है हवन के अंत में नौ ग्रहों को आहुति दी जाती है। इस दौरान अगल अलग पेड़ों की लकडियों को हवन की अग्नि में डाला जाता है, ये लकड़ियां आम, बड़, जामुन, जांटी, शमी आदि पेड़ों की होती है। मान्यता ये है की इन सब लकड़ियों औऱ सामग्रीयों से किया जाने वाला हवन घर में सकारात्मक उर्जा का विकास करके, बुरे विचारों और हवाओं को दूर करता है। हवन से दुख बिमारियां तो दूर होती ही है साथ ही परिवार में शांति होती है।

प्रकृति के लिए लाभकारी
प्राचीन वक्त से ही हमारे ऋषि मुनियों नें हवन के शोध करके ये निष्कृष निकाला था की हवन से उठने वाले धुएं से वातावरण शुद्ध होता है और प्रदूषण कम होता है। हवन कुंड में प्रयोग की जाने वाली सामग्री, घी और लकड़ियों के अपने अपने गुणों के फलस्वरुप हानिकारक गैसों का नाश होता है और आसपास का वातावरण शुद्ध होता है। इसके साथ साथ परंपरा के हिसाब से हवन करने के लिए किसी भी पेड़ को नही काटा जाता, बल्कि जो लकड़ियां सूख कर टूट जाती हैं उन्ही का प्रयोग हवन में किया जाता है। इस प्रकार हवन प्रकृति के लिए लाभकारी होता है।

वैज्ञानिक आधार
विज्ञान के शोधो से भी यही पता चलता है की हवन कुंड में इस्तेमाल किए जाने तत्वों के धुएं में लाभकारी किटाणु होते हैं जो प्रयावरण के प्रदूषण की ताकत को कम करके हवा की शुद्धता बढाता है।

चिकित्सीय महत्व
हवन के सिर्फ धार्मिक ही नही बल्कि चिकित्सीय महत्व भी होते हैं। नित्य हवन प्रक्रिया करने वाले लोग कई प्रकार की बिमारियों से बचे रहते हैं। एक हवन से एक परिवार के साथ साथ आस पास के लोगो को भी लाभ होते हैं। हवन का धुआं मस्तिष्क, फेफड़ों और श्वास संबन्धी समस्याओं को दूर करता है। इसके हवन का धुआं टाईफाईड जैसे रोगो को भी खत्म करने की क्षमता रखता है।

आर्य समाज और हवन

आर्य समाज की मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को नित्य हवन करना चाहिए यह ना सिर्फ अपने लिए फायदेमंद होता है बल्कि इस से पूरे वातावरण में शुद्धता आती है। एक हवन से कई फायदे इंसान को हो सकते हैं, इसलिए हवन को सिर्फ धर्म से ना जोड़े, ये मानव जाति के हित की प्रक्रिया है।

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