भारतीय विद्वान इस सभ्यता को अनादि परंपरा से उत्पन्न हुआ मानते हैं। परंतु पश्चिमी विद्वानों का मत है कि आर्यों का एक समुदाय भारत वर्ष में कहीं और से लगभग 1500 ईसा पूर्व आया और इनके आने के बाद इस सभ्यता की नींव पड़ी। हालाँकि भारत मे आर्यो के आने का प्रमाण अभी तक न ही किसी पुरातत्त्व खोज में और न ही किसी डी एन ए अनुसंधानों में मिला है।

व्रत

धार्मिक परंपराओं को मानते हुए किसी विशेष उद्दयेश्य की पूर्ति हेतु या अपने देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए भूखे पेट रहना व्रत कहलाता है। हिंदु धर्म परंपराओं के अनुसार अनेक प्रकार के व्रत या उपवास रखे जाते हैं। जिनमें कई कुछ घंटो के लिए, कभी दिनभर के लिए तो नवरात्रों में 8-9 दिन के लिए उपवास रखा जाता है।

व्रत धर्म का साधन माना जाता है दुनियां के लगभग सभी धर्मों में किसी ना किसी रुप में व्रत या उपवास रखने की परंपरा है। व्रत के आचरण से तन और मन की शुद्धि, पापों से दूरी, धर्म के प्रति समर्पण आदि की प्राप्ति होती है।

व्रत की वैदिक परंपरा

वैदिक काल की अपेक्षा पौराणिक युग में अधिक प्रकार के व्रतों का वर्णन किया गया है। समय के बदलाव के साथ साथ व्रत के नियमों में भी बदलाव आया है औऱ व्रत की कठोरता में भी कमी देखी जा सकती है। हमारे महान योगी ऋषि मुनि कई दिनों से लेकर सालो तक के उपवास रखते थे।

व्रत रखने और खोलने के सामान्य नियम
हिंदु धर्म ग्रंथों के अनुसार व्रत रखने और इसे खोलने के नियम निर्धारित किए गए हैं उपवास के दिन सुबह जल्दी उठ कर नहा धोकर अपने भगवान की पूजा और ध्यान किया जाता है उसी के बाद पानी ग्रहण किया जाता है।

उपवास के दौरान एक बार फलाहार कर सकते हैं, मगर अन्न का उपयोग उपवास के दौरान नही किया जाता।
उपवास के दिन शरीर को आराम देना जरुरी है। अगर आप मेहनत का कार्य करते हैं तो उसमें आपको कमजोरी महसूस हो सकती है।
उपवास के दिन धार्मिक भजन या कथाएं सुनने से मन पवित्र होता है और सकारात्मक सोच का विकास होता है।
ज्यादातर उपवासों या व्रतों का समापन चंद्रमा को जल चढा कर किया जाता है, इसके साथ साथ धूप दीप पूजा आरती से देवी देवताओं की स्तुति भी की जाती है।

व्रत रखने के चिकित्सिय महत्व
आयुर्वेद सहित कई चिकित्सा पद्धतियों में व्रत के महत्व को बताया गया है। व्रत करने से या उपवास रखने से शरीर को कई प्रकार के लाभ मिलते हैं।

उपवास करने से पाचन तन्त्र को आराम मिलता है और शरीर पर भोजन का भार नही होता ऐसी स्थिति में शरीर में उपस्थित विषैलों पदार्थो को निकालने का अवसर मिल जाता है। और पाचन शक्ति भी मजबूत होती है। इसीलिए ‘लंघन्‌म सर्वोत्तम औषधं’ यानी उपवास को सर्वश्रेष्ठ औषधि माना जाता है।

उपवास करना आर्थराइटिस, अस्थमा, उच्च रक्तचाप, हमेशा बनी रहने वाली थकान, कोलाइटिस, स्पास्टिक कोलन, इरिटेबल बॉवेल, लकवे के कई प्रकारों के साथ-साथ न्यूराल्जिया, न्यूरोसिस और कई तरह की मानसिक बीमारियों में फायदेमंद साबित होता है।

माना जाता है की उपवास जितना लंबा होगा शरीर की ऊर्जा उतनी ही अधिक बढ़ेगी। उपवास करने वाले की श्वासोच्छवास विकार रहित होकर गहरा और बाधा रहित हो जाता है। इससे स्वाद ग्रहण करने वाली ग्रंथियाँ पुनः सक्रिय होकर काम करने लगती हैं। उपवास आपके आत्मविश्वास को इतना बढ़ा सकता है ताकि आप अपने शरीर और जीवन और क्षुधा पर अधिक नियंत्रण हासिल कर सकें।

इसके साथ साथ उपवास करने से श्वसन क्रिया अच्छे से होने लगती है इससे फेफड़ों की सारी रुकावटें खत्म हो जाती है और सांसो का बिना किसी अवरोध के आना जाना होता है। फेफड़ों के साथ साथ उपवास से दिल को भी काफी फायदा मिलता है, क्योंकि इस से हानिकारक कोलेस्ट्राल में कमी आती है।

योगियो का मानना है की बिना किसी धार्मिक कारण के भी इंसान को सप्ताह में कम से कम एक दिन का उपवास रखना बहुत लाभदायक होता है। तकनीकि भाषा में कहें तो इस से हमारे शरीर की मशीनरी को आराम मिलता है और वह अच्छे से कार्य करने के लिए खुद को तैयार कर पाती है।

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