भारतीय विद्वान इस सभ्यता को अनादि परंपरा से उत्पन्न हुआ मानते हैं। परंतु पश्चिमी विद्वानों का मत है कि आर्यों का एक समुदाय भारत वर्ष में कहीं और से लगभग 1500 ईसा पूर्व आया और इनके आने के बाद इस सभ्यता की नींव पड़ी। हालाँकि भारत मे आर्यो के आने का प्रमाण अभी तक न ही किसी पुरातत्त्व खोज में और न ही किसी डी एन ए अनुसंधानों में मिला है।

पीपल वृक्ष

हिंदु धर्म मान्यताओं के हिसाब से सभी जीव, जंतुओ और वनस्पतियों को विशेष महत्व दिया गया है। और यही कारण है की किसी ना किसी रुप में नदी पहाड़ जीव और वनस्पतियों को धार्मिक आस्थाओं के साथ जोड़ा गया है, जिससे इनका महत्व और ज्यादा बढ जाता है। सनातन धर्म के सिद्धांतो और नीयमों के हिसाब से पीपल के वृक्ष को सर्वोत्तम माना गया है, या ये कहें की पीपल को एक दैविय वृक्ष माना जाता है तो ये अतिश्योक्ति नही होगी। जी हां पीपल का पेड़ हिंदुओ के लिए उतना ही पूज्यनीय है जितना अन्य कोई भी देवी देवता। मगर क्या पीपल के पेड़ का सिर्फ धार्मिक महत्व ही है या कुछ और जानते हैं पीपल वृक्ष के महत्व ।

पीपल वृक्ष के पौराणिक महत्व

हिंदु धर्म के पद्मपुराण के अनुसार पीपल के वृक्ष को भगवान विष्णु का रुप माना गया है। इसी के चलते धर्म के क्षेत्र में पीपल के वृक्ष को दैवीय पेड़ के रुप में मान्यता मिली और सभी विधि विधानों के साथ इसकी पूजा की जाने लगी। हिंदु धर्म में अनेक अवसरों पर पीपल के वृक्ष की पूजा के विधान है और मान्यता यह भी है की सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष में भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का वास होता है। इसके साथ साथ स्कंद पुराण के अनुसार पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तो में हरि आदि देव रहते हैं इसी कारण से पीपल के वृक्ष की पूजा करने से सभी देव प्रसन्न होते हैं।

पीपल के पेड़ में पितरों का निवास भी माना जाता है इसमें सब तिर्थों का निवास भी होता है इसलिए ज्यादातर संस्कार इसके नीचे कराए जाते हैं। जैसा की माना जाता है की पीपल के वृक्ष के हर हिस्से में किसी ना किसी देवता का वास होता है इसलिए हिंदु लोग इसकी लकडियों को सिर्फ हवन कुंड में जलाते हैं, इसके अलावा कहीं भी जलाना अशुभ माना जाता है।

शनि साढेसाती में महत्व
अगर किसी जातक की शनि साढेसाती चल रही हो तो इस वक्त में हर शनीवार पीपल के वृक्ष में जल अर्पित करके इसके सात चक्कर लगाने से लाभ होता है। इसके साथ साथ शाम के समय पीपल के पेड़ की जड़ में दिपक जलाना भी फायदेमंद होता है।

पीपल और शिव
हिंदु धर्म मान्यताओं के अनुसार अगर कोई व्यक्ति पीपल के पेड़ के नीचे भगवान शिव की स्थापना करके नित्य नीयम से पूजा अराधना करे तो उसकी जिंदगी के सार कष्ट दूर हो जाते हैं।

ज्ञान का केन्द्र
पीपल के वृक्ष की महता हमें अपने पुराणो और इतिहास में बखूबी मिल जाएगी। इस वृक्ष की सकारात्मक उर्जा को देखते हुए बड़े बड़े ऋषि महात्माओं नें पीपल की जड़ में बैठ कर तप किया और ज्ञान अर्जित किया। महात्मा बुद्ध नें भी पीपल की जड़ में बैठ कर ही जन्म मृत्युं और संसार के रहस्यों को जाना था

वैज्ञानिक महत्व
पीपल के वृक्ष को सिर्फ धर्म और पुराणों में नही बल्कि विज्ञान में भी काफी महत्व दिया गया है। प्रकृति विज्ञान के अनुसार पीपल का वृक्ष दिन रात आक्सीजन छोड़ता है, जो हमारे पर्यावरण के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इसके अलावा पीपल के पेड़ को अक्षय वृक्ष भी कहा जाता है, क्योंकि ये पेड़ कभी भी पत्ते विहीन नही होता मतलब इसमें एक साथ पतझड़ नही आती बल्कि पत्ते झड़ते रहते हैं और नए आते रहते हैं। पीपल के वृक्ष की इस खूबी के कारण इसके जीवन मृत्यु चक्र का घोतक भी बताया गया है।

चिकित्सिए महत्व
पीपल के पेड़ का चिकित्सा क्षेत्र में भी काफी महत्व होता है इसका प्रयोग दमा, गैस, कब्ज, दांतो और त्वचा रोग में किसी ना किसी रुप में किये जाने से लाभ मिलता है। इसके अलावा पीपल के पत्ते विष के प्रभाव को भी कम करते हैं, अगर कोई जहरीला कीट, कीड़ा या जीव किसी इंसान को काट लेता है तो उस वक्त में पीपल के पत्तो का रस थोड़ी थोड़ी देर में पिलाने से विष का असर कम होता है।

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