भारतीय विद्वान इस सभ्यता को अनादि परंपरा से उत्पन्न हुआ मानते हैं। परंतु पश्चिमी विद्वानों का मत है कि आर्यों का एक समुदाय भारत वर्ष में कहीं और से लगभग 1500 ईसा पूर्व आया और इनके आने के बाद इस सभ्यता की नींव पड़ी। हालाँकि भारत मे आर्यो के आने का प्रमाण अभी तक न ही किसी पुरातत्त्व खोज में और न ही किसी डी एन ए अनुसंधानों में मिला है।

सिंदूर

सिंदूर एक ऐसा शब्द जिसे पढते सुनते ही हमारे जेहन में एक शादीशुदा भारतीय नारी की तस्वीर अक्समात ही आ जाती है। उत्तर भारतीय शादीशुदा महिलाएं सुहाग की निशानी के रुप में सिंदूर को अपनी मांग में धारण करती हैं। जबकी दक्षिण में ये परंपरा नही हैं। उत्तर भारतीय नारियों के लिए सिंदूर सबसे बड़ा गहना होता है, जिसका संबंध पूर्ण रूप से पति से होता है। सिंदूर महिलाओं के लिए शोभाग्यवती चिन्ह होने के साथ साथ इसके अन्य लाभ भी हैं।

सिंदूर शादीशुदा महिलाओं के लिए शोभाग्यवती चिन्ह

पति की लंबी उम्र के लिए लगाना
परंपरागत रुप से सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की उम्र के लिए मांग में सिंदूर भरने का रिवाज माना जाता है। शादी में फेरों पर पति खुद अपने हाथ से अपनी पत्नी की मांग में सिंदूर भरता है, जिसके बाद महिला तब तक माथे में सिंदूर भरती है जब तक वह सुहागिन रहती है। शायद यही वजह है की विधवा महिलाएं मांग में सिंदूर धारण नही करती।

शक्ति का प्रतीक
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लाल रंग से सती और पार्वती की उर्जा को व्यक्त किया जाता है। सती को हिंदु समाज में एक आदर्श पत्नि के रूप में जाना जाता है जो अपने धर्म अपनी शक्ति के दम पर भगवान से भी अपने वचन मनवाने की शक्ति रखती है। मान्यता यह भी है की सिंदूर लगाने से मां पार्वती महिलाओं को अखंड सौभाग्यशाली होने का आशिर्वाद भी देती है।

सामाजिक महत्व
सामाजिक रीत रिवाजों के अनुसार जब किसी लड़की की शादी होती है तो उस पर एक नए परिवार को सम्हालने के बहुत से दायित्व आते हैं, जिनके कारण उसे शारीरिक और मानसिक थकान महसूस होती है। मांग में सिंदूर लगाने से मन शांत रहता है और तनाव दूर होते हैं, इसिलिए शादी होने के बाद सिंदूर धारण करने की परंपरा चली आ रही है।

मन को शांत रखने में सहायक
परंपरागत कारणों के साथ साथ सिंदूर धारण करने के वैज्ञानिक कारण भी है, सिंदूर बनाने में अक्सर हल्दी, चंदन और हर्बल रंगो का इस्तेमाल किया जाता है, जिसको सिर के बीचो बीच लगाने से दिमाग शांत रहता है और घर में सुख शांति बनी रहती है।

रक्तचाप को नियन्त्रित करता है
सिंदूर लगाने से शरीर के उच्च रक्तचाप पर नियन्त्रण रहता है। इसके साथ साथ महिलाओं में काम भावना को जागृत करने में भी सिंदूर का विशेष महत्व होता है।

विधुतीय उर्जा को नियन्त्रित करता है
मांग में जहां सिंदूर भरा जाता है वह स्थान ब्रह्मरंध और अध्मि नामक मर्म के ठीक उपर होता है। सिंदूर मर्म स्थान को बाहरी बूरे प्रभावों से बचाता है। इसके साथ ही सिंदूर में पारा जैसी धातु अधिक होने के कारण चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नही पड़ती। इसके अलावा इससे स्त्री के शरीर से निकलने वाली विधुतीय उर्जा को भी नियन्त्रित किया जाता है।

वैसे तो सभी विवाहित महिलाएं अपनी मांग में सिंदूर लगाती है मगर क्या आपको पता है की सिंदूर लगाने का सही तरीका क्या है.. आईए आपको बताते हैं सिंदूर लगाने के सही और गलत तरिके कौन कौन से होते हैं

सिंदूर को छुपाए नहीं
हिंदु मान्यताओं के अनुसार जो महिला सिंदूर को अपने बालो में छुपा लेती है उनके पति समाज में कट सा जाता है, मतलब उसका सामाजिक महत्व कम हो जाता है। इसलिए सलाह दी जाती है की सिंदूर लंबा लगाएं और उसे बालो में छुपाए नही।

मांग के बीचो बीच लगाएं
सिंदूर लगाने का सही स्थान मांग के बीचो बीच होता है, मान्यता ये है की जो स्त्री सिंदूर को किनारे पर लगाती हैं उनके पति उनसे किनारा कर लेते हैं। जिसके मतलब पति पत्नि के रिस्तों में खटास आ जाती है और मतभेद बढते हैं।

लंबा सिंदूर लगाएं
जैसा की माना जाता है की सिंदूर का संबन्ध पति की आयु से जुड़ा होता है, इसलिए सुहागिन महिलाओं को लंबा सिंदूर लगाना चाहिए जिस से पति की आयु लंबी हो।

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