पुरी की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार मालवा के राजा इन्द्रद्युम्न भगवान विष्णु के भक्त थे। एक रात दिव्य स्वप्न से इन्द्रद्युम्न को ज्ञात हुआ कि उत्कल (ओडिशा) में भगवान विष्णु अपने दिव्य स्वरुप में विद्यमान हैं। राजा ने तुरंत विद्यापति को भगवान श्रीहरि विष्णु के दिव्य स्वरुप का पता लगाने के लिए भेज दिया। विद्यापति को ओडिशा पहुंचने पर पता चला कि वहां भगवान विष्णु की नील महादेव नाम से एक घने जंगल के किसी पहाड़ी में गुप्त स्थान पर पूजा की जाती है। स्थान का पता लगाने के लिए ब्राह्मण विद्यापति ने विश्वासू की कन्या ललिता के साथ विवाह कर लिया। ललिता के बहुत कहने पर विश्वासू विद्यापति को एक बार नील माधव के गुप्त पूजा-स्थल ले जाने के लिए एक शर्त पर तैयार हो गया, शर्त थी कि यात्रा के दौरान उसे अपनी आंखों पर पट्टी बांधे रखनी होगी। विद्यापति ने शर्त मान लिया। विश्वासू विद्यापति को साथ लेकर नील गुफा पहुंचे जहां नील माधव की पूजा की जाती थी। विद्यापति ने चतुराई से जाते समय कुछ सरसों के दाने पूरे रास्ते में बिखेरते गया। जो कुछ ही दिनों में पनप गए और उनकी मदद से विद्यापति आसानी से गुफा तक पहुंचने में कामयाब हो गया। विद्यापति जैसे ही यह समाचार राजा इन्द्रद्युम्न को दिया वो तुरंत नीलमाधव के दर्शन करने के लिए निकल पड़े। परंतु जब वो नीलकंदरा पहुंचे तो वहां नील माधव की प्रतिमा गायब हो चुकी थी। राजा इन्द्रद्युम्न बहुत ही निराश हुए, तभी आकाशवाणी हुई, आकाशवाणी में राजा इन्द्रद्युम्न को पुरी (Puri) के समुद्र तट की ओर जाकर समुद्र की लहरों में बहते हुए एक लकड़ी के गट्ठे को ढूंढने का आदेश मिला। राजा इन्द्रद्युम्न को वो दिव्य लकड़ी का गट्ठा मिल गया और उन्होंने बढ़ई को उसमें से भगवान की मूर्ति बनाने का निर्देश दिया। रहस्यमयी तरीके से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्ति को अधूरा बनाकर बढ़ई गायब हो गया और इस तरह स्वामी जगन्नाथ की लकड़ी के मूर्तरूप में उत्पत्ति हुई।
दर्शनीय स्थल
पुरी (Puri) में दर्शनीय स्थलों की बात करें तो इसमें प्रथम स्थान जगन्नाथ मंदिर का आता है जिसे विश्व में जगन्नाथ पुरी के नाम से जाना जाता है। इसके बाद लोकनाथ मंदिर का स्थान है यहां भक्तगण भगवान शिव की आराधना करने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। इसके अलावा गुंडिचा मंदिर और यहां का समुद्र तट भी देखने योग्य है।
जगन्नाथ मंदिर
यह मंदिर पुरी के सबसे शानदार मंदिरों में से एक है। उपलब्ध तथ्यों के आधार पर इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चोड़गंग ने अपनी राजधानी को दक्षिणी उड़ीसा से मध्य उड़ीसा में स्थानांतरित करने की खुशी में करवाया था। भगवान जगन्नाथ का यह मंदिर नीलगिरी पहाड़ी के आंगन में स्थित है। मंदिर चारों ओर से 20 मीटर ऊंची दीवार से घिरा है। इस मंदिर के परिसर में कई छोटे-छोटे मंदिर बने हैं। मंदिर के शेष भाग में पारंपरिक तरीके से बना पूजा-कक्ष और नृत्य के लिए बना बहु खंबों वाला एक मंडप है। जगन्नाथ मंदिर की विशेषता है कि मंदिर में जाति को लेकर कभी भी मतभेद नहीं हुआ है। यहां सभी जाती के भक्त अपने आराध्य का दर्शन बड़ी आसानी और सौहार्दपूर्ण तरीके से करते हैं।
लोकनाथ मंदिर
यह बहुत ही प्रसिद्ध शिव मंदिर है। जगन्नाथ मंदिर से लोकनाथ मंदिर एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां के स्थानीय लोगों में ऐसा विश्वास है कि त्रेतायुग में भगवान श्री राम ने इस जगह पर अपने हाथों से शिवलिंग की स्थापना की थी।
गुंडिचा मंदिर
पुरी में स्थित गुंडिचा मंदिर भी काफी लोकप्रिय और सुंदर है। इस मंदिर को भक्तगण गुंडिचा घर के नाम से भी जानते हैं। यह भगवान जगन्नाथ मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर है। इस मंदिर का निर्माण कलिंग काल के दौरान हुआ है। मंदिर में कलिंग वास्तुकला की छाप दिखाई देती है। जो देखने में बेहद खूबसूरत व आकर्षक है।
पुरी कैसे पहुंचे
यदि आप जगन्नाथ पुरी की यात्रा करने का मन बना रहे हैं तो हम आपको बता दें कि यह यात्रा आप तीनों मार्ग से कर सकते हैं। पुरी वायु, रेल और सड़क मार्ग के जरिए आसानी से पहुंचा जा सकता है।
वायु मार्ग
जगन्नाथ पुरी से सबसे नजदीकी एयरपोर्ट भुवनेश्वर का है। यह देश के कई राज्यों से जुड़ा हुआ है। यहां के लिए सरकारी और निजी एयरलाइंस की कई फ्लाइट्स उपलब्ध हैं।
रेल मार्ग
जगन्नाथ धाम से नजदीकी रेलवे स्टेशन पुरी में ही है। रेल से ओडिशा की प्राकृतिक सुंदरता का लुफ्त उठाया जा सकता है। यात्रा सुविधाजनक और आरामदेह है। नई दिल्ली से पुरी के लिए पुरूषोत्त्म एक्सप्रेस रोजाना चलती है।
सड़क मार्ग
पुरी भुवनेश्वर से राष्ट्रीय राजमार्ग के जरिए जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग द्वारा ओडिशा के कोने-कोने तक पहुंचा जा सकता है। इससे सड़क से यात्रा करना आसान है। इन मार्गों पर नियमित बस सेवाएं चलती हैं।