शिरडी के साईं बाबा
कुछ पुराने ग्रंथों के आधार पर माना जाता है कि शिरडी (Shirdi) के साईं बाबा का जन्म 1838 से 1842 के बीच हुआ था। लेकिन यह विवादास्पद है। साईं बाबा एक फकीर और साधू जैसी जिंदगी जिया करते थे। साईं नाम उन्हें तब मिला जब वो कम उम्र में ही शिरडी आ गए और यहां के एक पुरानी मस्जिद में रहने लगे। मस्जिद में रहने की वजह से बहुत से लोग उन्हें इस्लाम धर्म का मानते थे, लेकिन जब साईं ने खुद मस्जिद को द्वारका माई का नाम दिया तो सब उन्हें हिंदू धर्म का मानने लगे। लेकिन साईं के भक्त जानते हैं कि, साईं ने कभी खुद को किसी एक धर्म से नहीं बांधा। साईं के भक्तों में किन-किन मजहब के लोग शमिल हैं यह कोई नहीं जानता है। परंतु साईं ऐसे संत हैं जिन्हें हर धर्म के लोग मानते हैं। माना जाता है कि साईं 16 साल की उम्र में शिरडी आए थे और चिरसमाधि में लीन होने तक यहीं रहें। उनके देह त्यागने के महज 4 साल बाद ही सन 1922 में साईं की समाधि के ऊपर इस पवित्र मंदिर को बनाया गया। मंदिर निर्माण करने का उद्देश्य यह था कि मंदिर के जरिए साईं के उपदेशों और शिक्षाओं का बेहतर तरीके से प्रचार-प्रसार किया जा सके।
शिरडी के दर्शनीय स्थान
शिरडी के सबसे दर्शनीय स्थान में साईं समाधि मंदिर है। इसके अतिरिक्त यहां द्वारका माई नाम का एक मस्जिद है। अन्य दर्शनीय स्थान की बात करें तो इसमें गुरूस्थान और लेंडी बाग़ शामिल हैं।
साईं बाबा का समाधि मंदिर
जहां वर्तमान में साईं बाबा विराजमान हैं। वही बाबा की समाधि स्थल है। बाबा द्वारा उनके जीवनकाल में प्रयोग की गईं सभी वस्तुएं, इस मंदिर के विशेष कमरे में भक्तों के दर्शनार्थ रखी गई हैं। मंदिर में बाबा की एक दिव्य प्रतिमा स्थापित है। जो सन 1954 में शिल्पकार स्वर्गीय बालाजी वसंत द्वारा संगमरमर के पत्थर से निर्मित की गई थी। मूर्ति का नियमित अभिषेक, पूजा एवं दिन में चार बार आरती की जाती है। यहां भक्त अपनी श्रद्धा के मुताबिक साईं की भक्ति करते हैं। उन्हें साईं के धर्म को लेकर होने वाले विवादों से कोई फर्क नहीं पड़ता।
द्वारका माई
द्वारका माई वो मस्जिद है, जहां साईं बाबा ने सबसे अधिक समय तक निवास किया था। साईं बाबा ने इस मस्जिद का नाम द्वारका माई रखा। द्वारका माई साईं समाधी मंदिर के दाई तरह स्थित है। साईं बाबा हमेशा यहां रात्रि में दीपक जलाते थे। आज भी द्वारका माई में वो पत्थर रखा हुआ है जिस पर साईं बाबा बैठते थे। आज भी इस मस्जिद में साईं बाबा की बड़ी फोटो लगी हुई है। यहां पर साईं बाबा की आटा पिसने की चक्की तथा बाबा जिस बर्तन में भिक्षा मांगते थे, वो भक्तों के दर्शनार्थ हेतु रखी हुई है।
गुरुस्थान
साईं बाबा जब 16 साल की उम्र में शिरडी आए, तब वे सबसे पहले एक नीम के पेड़ के नीचे विश्राम किए थे। यही स्थान आज गुरुस्थान के नाम से जाना जाता है। साईं बाबा की कृपा से यह कड़वा नीम भी मीठा हो गया। गुरुस्थान का पुर्न निर्माण 30 सितम्बर 1941 को किया गया और साईं बाबा की एक मूरत भी लगाई गयी। यहां शिवलिंग और नंदी भी विराजमान हैं।
लेंडी बाग़
गुरुस्थान से कुछ ही दूरी पर लेंडी बाग़ नामक बगीचा है। माना जाता है कि इस बगीचे को स्वयं बाबा ने अपने हाथों से बनाया है। वे इसे रोज सींचते थे। लेंडी बाग़ का नाम उस समय बगल से होकर गुजरने वाले नाले की वजह से पड़ा। बाबा यहां सुबह व शाम में आते और नीम के वृक्ष के नीचे आराम करते थे। बाबा ने नीम के वृक्ष तले 2 फीट का गड्ढा खोदा और एक दीपक रखा। वर्तमान में इस स्थान पर दीपक को रखने के लिए एक अष्टकोणी संगमरमर का दीपगृह बनाया गया है।
शिरडी कैसे पहुंचे
भक्तगण साईं धाम शिरडी (Shirdi) वायु, रेल और सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं।
वायु मार्ग
शिरडी का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट औरंगाबाद में है जो यहां से करीब 115 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा मुंबई एयरपोर्ट 250 किलोमीटर और पुणे एयरपोर्ट करीब 200 किलोमीटर दूर है।
सड़क मार्ग
शिरडी महाराष्ट्र के सभी प्रमुख जिलों से सड़क मार्ग के जरिए अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग से आप यहां किसी भी राज्य से पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग
रेल मार्ग के जरिए श्रद्धालु शिरडी पहुंच सकते हैं हाल ही में शिरडी रेलवे स्टेशन की शुरुआत हुई है इसे साईंनगर रेलवे स्टेशन कहा जाता है यह साईं मंदिर से केवल 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।