भारतीय विद्वान इस सभ्यता को अनादि परंपरा से उत्पन्न हुआ मानते हैं। परंतु पश्चिमी विद्वानों का मत है कि आर्यों का एक समुदाय भारत वर्ष में कहीं और से लगभग 1500 ईसा पूर्व आया और इनके आने के बाद इस सभ्यता की नींव पड़ी। हालाँकि भारत मे आर्यो के आने का प्रमाण अभी तक न ही किसी पुरातत्त्व खोज में और न ही किसी डी एन ए अनुसंधानों में मिला है।
हिंदु पौराणिक तथ्यो और रिवाजो के अनुसार महिलाओं के लिए सोलह ऋंगार का प्रावधान है, जो ना सिर्फ औरत के सौंदर्य को बढाते हैं बल्कि इनके कुछ वैज्ञानिक या धार्मिक कारण भी होते हैं। इन्ही सोलह ऋंगारों में एक ऋंगार होती है पैर की बिछिया। बिछियां एक ऐसा आभूषण है जिसे हिंदु और मुस्लिम दोनो धर्मों की महिलाए धारण करती हैं। सामाजिक मान्यताओं के अनुसार सभी शादीशुदा महिलाओं को बिछिया पहननी चाहिए। आमतौर पर ये बिछिया चांदी धातु से बनी होती है। लोग इसे सिर्फ शादी के प्रतिक के रुप में देखते हैं मगर बहुत कम लोग जानते हैं की इसके पीछे कुछ वैज्ञानिक कारण भी होते हैं, आईए आपको बताते हैं की चांदी की बिछिया पहनने के क्या क्या महत्व हैं।
गर्भाशय को नियन्त्रित करती है
अगर आपने ध्यान से देखा हो तो आपको पता होगा की बिछियां ज्यादतर दोनो पैरों की दूसरी उंगली में पहनी जाती है। हमारे शरीर की संरचना के अनुसार अंगूठे के पास वाली उंगली के पास एसी नस होती है जिसका सीधा संबंध महिला के गर्भाशय से होता है। यह गर्भाशय को नियन्त्रित करती है और रक्तचाप को संतुलित करने में सहायक होती है, इसलिए इस स्थान पर बिछिया पहनने से एक्यूप्रेशर के कारण यह नस एक्टिव रहती है और अपने कार्य को भली भांती करती है। यहां हम ये भी कह सकते हैं की पैरों की बिछियां महिलाओं की प्रजनन क्षमता को बढाने में कारगर साबित होती है।
मासिक चक्र को नियन्त्रित रखना
पैरों में पहने जाने वाली बिछियां के दबाव के कारण रक्तचाप नियन्त्रित और नियमिय रहता है और यह गर्भाशय तक सही मात्रा में पहुंचता है। बिछियां के इस प्रभाव के कारण महिलाओं को तनाव से मुक्ति मिलती है, जिसके फलस्वरुप उनका मासिक चक्र नियमित रहता है।
बांझपन को दूर करती है
पैरों की ये बिछियां गर्भाशय से सीधा संबंध रखती है अपने एक्यूप्रेशर से ये औरत की मासिक प्रक्रिया को नियमित रखते हुए उनकी प्रजनन क्षमता को बढाती है जिससे बांझपन जैसी शिकायतों से मुक्ति मिलती है।
मासपेशियों को व्यवस्थित करना
आयुर्वेद के अनुसार बिछिया पहनने से जो एक्यूप्रेशर होता है उस से तलवे से लेकर नाभि तक की सभी नसों और पेशियों सकारात्मक असर होता है और ये व्यवस्थित तरिके से कार्य करती है। इसके साथ साथ साईटिक नर्व की एक नस को भी बिछिया द्वारा दबाव दिया जाता है जिसके कारण आस – पास की सभी नसों में रक्त प्रवाह तेज होता है जिससे युरेटस, ब्लेडर के साथ साथ आंतों तक का रक्त प्रवाह ठीक होता है।
चांदी कि बिछिया का महत्व
चांदी उर्जा का एक अच्छा सुचालक धातु होता है जिस कारण चांदी की बिछियां पृथ्वी की ध्रुवीय उर्जा को शुद्ध करके उसे शरीर तक पहुंचाने का कार्य करती है, जिसके कारण पूरे शरीर में सकारात्मक उर्जा का संचरण होता है और शरीर उर्जावान बनता है।
पौराणिक महत्व
हिंदु पौराणिक महाकाव्य रामायण में भी बिछियां का जिक्र आता है, जब लंकापति रावण माता सीता का हरण करके अपने विमान में ले जा रहा था तो सीता माता नें अपनी निशानी के रुप में पैर की बिछियां को निकाल कर जमीन पर गिरा दिया था, जिसकी पहचान भगवान राम ने की थी।
फैशनेबल बिछियां
आजकल बाजार में विभिन्न धातुओं और डिजाईनों की बिछियां उपलब्ध होती हैं। शादीशुदा महिलाएं तो बिछिया पहनती ही हैं साथ ही कुछ कुवारीं लड़कियां भी फैशन के लिए बिछियां का चयन करती हैं। आजकल फैशन के इस दौर में पैरों की इस बिछियां को टो रिंग के रुप में भी जाना जाता है जिसे लगभग हर उम्र की महिलाएं धारण करती है और अपने ऋंगार को बढाती हैं।