हर धार्मिक स्थान से कई रोचक कहानियां एवं जानकारियां जुड़ी हैं। हमारा उद्देश्य यही है कि हम अपने पाठकों तक इस तरह की महत्वपूर्ण जानकारियां पंहुचा सकें। हमारे इस खंड में आप भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के बारे में जान सकेंगें।

हेमकुंड साहिब

हेमकुंड साहिब उत्तराखंड के चमोली जिले के अंतर्गत आता है। समुद्र तल से हेमकुंड साहिब (Hemkund Sahib) 4632 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह स्थान सिख धर्म के पवित्र स्थलों में से एक है। यहां हर वर्ष सिख धर्म के लाखों अनुयायी पहुंचते हैं। हेमकुंड साहिब हिमालय के सात पर्वतों से घिरा है। इन सातों पर्वत को हेमकुंड पर्वत भी कहा जाता है। इन्हीं पर्वतों से यहां एक झील का निर्माण हुआ है जिस पर श्री हेमकुंड साहिब गुरूद्वारा बना है। इस स्थान का वर्णन सिख गुरू गोबिंद सिंह द्वारा रचित सिख धर्म ग्रंथ दसम ग्रंथ में विस्तार से किया गया है। ऐसे में यह स्थान उन अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखता है। जो दसम ग्रंथ में श्रद्धा रखते हैं। हम आगे बात करेंगे कि हेमकुंड साहिब गुरूद्वारे का निर्माण कब किया गया? सिख धर्म में यह स्थान कितना महत्वपूर्ण है, साथ ही यहां अन्य कौन से दर्शनीय स्थान हैं तो आइए जानते हैं हेमकुंड साहिब से जुड़े रोचक तथ्य।

अन्य धार्मिक स्थल

हरिद्वार का पौराणिक इतिहास

हरिद्वार तीर्थ के रूप में अति प्राचीन है परंतु नगर के रूप में यह ज्यादा प्राचीन नहीं है। हरिद्वार नाम भी उत्तर पौराणिक काल में ही प्रचलित हुआ है। महाभारत काल में इसे केवल गंगाद्वार कहा गया है। हिंदू पुराणों में हरिद्वार को गंगाद्वार, मायाक्षेत्र, मायातीर्थ, सप्तस्रोत तथा कुब्जाम्रक के नाम से उल्लेखित किया गया है। माना जाता है कि यहां कपिल मुनि का तपोवन था।

सिख धर्म में हेमकुंड साहिब

सिख धर्म में हेमकुंड साहिब (Hemkund Sahib) को एक तीर्थस्थान के तौर पर मान्यता प्राप्त है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी स्थान पर गुरू गोबिंद सिंह ने देवों के देव महादेव की तपस्या की थी। जिसके बाद इस स्थान को एक तीर्थ के रूप में माना जाने लगा। लेकिन इस तीर्थ को किसने और कैसे खोजा इस संबंध में एक कथा प्रचलित है। कथा इस प्रकार है। एक बार संत सोहन सिंह जी टिहरी में सतसंग कर रहे थे। इस बीच उन्हें हेमकुंड साहिब का जिक्र किया। लेकिन तब तक यह पवित्र स्थान कहां है इसकी जानकारी किसी को न थी। संत सोहन सिंह जी गुरू के प्रति अगाध श्रद्धा रखते थे। संत सोहन सिंह ने इस पवित्र स्थान को तलाश ने का संकल्प लिया। जिसके लिए वे कई जगह गए और जानकारी जुटाने की कोशिश की। लेकिन कहीं से कुछ पता न चला। बद्रीनाथ से लौटते समय संत सोहन सिंह पांडुकेश्वर में रूक गए। यहां उन्हें पता चला कि पांडुकेश्वर को राजा पांडु की तप भूमि होने के चलते पांडुकेश्वर कहा जाता है। संत जी को अपने प्रश्न का आधा उत्तर मिल गया। लेकिन अब तक उन्हें सप्तश्रृंग यानि वे सात पर्वत नहीं दिखाई दिये थे। एक दिन सुबह स्थानीय लोगों का एक जत्था नए वस्त्र पहनकर कहीं जाने की तैयारी में था। जब संत सोहन सिंह ने उनसे पूछा तो उन्हें चला कि ये लोग हेमकुंड लोकपाल तीर्थ में स्नान करने जा रहे हैं। संत जी भी उनके साथ हेमकुंड चले गए। जहां उन्हें उन सात पर्वतों के दर्शन हुए। जिसे देखकर संत सोहन सिंह जी के खुशी का ठिकाना न रहा। लेकिन अब भी उस स्थान का पता लगाना शेष था जहां गुरू गोबिंद सिंह ने महादेव की आराधना की थी। कहते हैं कि तब संत सोहन सिंह जी ने गुरु जी से प्रार्थना की कि हे प्रभु आपकी कृपा से मैं आप की तपोभूमि तक पहुंचने में कामयाब हुआ हूं। अब आप मुझे वह स्थान दिखायें जहां आप महादेव की आराधना करते थे। कहते हैं कि जैसे ही संत जी ने प्रार्थना पूरी की, वैसे ही कमर तक जटा, नाभि तक दाढ़ी रखे, शेर की खाल पहने योगेश्वर प्रकट हुए और पूछे किसे ढूंढ रहो? संत जी ने कहा कि हे योगेश्वर महाराज! मैं अपने गुरु जी का स्थान ढूंढ रहा हूं। जहां उन्होंने देवो के देव महादेव की तपस्या की थी। योगेश्वर बोले कि यही वह शिला है जहां गुरुजी बैठते थे। यह सुनते ही संत सोहन सिंह जी भाव विभोर हो गए और शिला से लिपट गए। उनकी आखों से खुशी के अश्रु बहने लगे। उन्होंने अपने आप को संभालते हुए जब योगेश्वर की ओर देखा तो वे तब तक अंतर्धान हो चुके थे। संत सोहन सिंह जी ने योगेश्वर के चरणों की धूल को माथे पर लगाकर अमृतसर वापस लौट आए। संत जी ने भाई वीरसिंह सरदार को सारी बात बताई। भाई जी यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और संत जी से कहा कि वहां जाकर गुरु ग्रंथ का प्रकाश कर दो । इस प्रकार सन 1936 में वहां एक गुरुद्वारा बनकर तैयार हुआ और 1937 में पहला प्रकाश पर्व हेमकुंड साहिब में मनाया गया। जिसके बाद से सिख धर्म के मानने वाले यहां पहुंचते रहे हैं।

यहां के दर्शनीय स्थान
यहां के दर्शनीय स्थानों में हेमकुंड साहिब गुरूद्वारा प्रमुख है। इसके अतिरिक्त लक्ष्मण मंदिर व वैली ऑफ फ्लावर्स दर्शनीय हैं।

हेमकुंड साहिब गुरूद्वारा
सप्त ऋषि पर्वत के मध्य स्थित हेमकुंड साहिब पहुंच कर तीर्थयात्री सर्वप्रथम सरोवर में स्नान करते हैं। इसके बाद गुरुद्वारे में पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब पर चढ़ावा-चढ़ाते हैं और फिर गुरु की अरदास करते हैं। अधिक ऊंचाई पर होने के कारण यह स्थान अक्टूबर से अप्रैल तक बंद रहता है। गुरूद्वारा की वास्तुकला अत्यंत मनोहर है। जो देखते ही बनती है।

लक्ष्मण मंदिर
हेमकुंड साहिब से यह मंदिर महज एक किमी की दूरी पर सरोवर के किनारे स्थित है। हेमकुंड साहिब के बाद लोग यहां आकर भी माथा टेकते हैं।

वैली ऑफ फ्लावर्स
नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान का एक भाग फूलों की घाटी के नाम से जाना जाता है। यहां फूलों की 500 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। माना जाता है कि इस स्थान का सबसे पहले पता लगाने वाले दो ब्रिटिश मूल के पर्वतारोही थे। इसके बाद ही यह स्थान विश्व के सामने आ सका।

हेमकुंड साहिब कैसे पहुंचे
हेमकुंड (Hemkund Sahib) साहिब तीर्थ पहुंचने के लिए सबसे उत्तम मार्ग सड़क है। क्योंकि यात्रा का अधिकतर रास्ता यात्रियों को सड़क मार्ग से ही तय करना पड़ता है।

वायु मार्ग
देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट नजदीकी एयरपोर्ट है। जो ऋषिकेश से 21 किलो मीटर दूर है। गोविंदघाट से जॉली ग्रांट की दूरी 285 किलोमीटर है। यहां से गोविंदघाट तक टैक्सी या बस के जरिए पहुंच सकते हैं। इसके अलावा हालही में गोविंदघाट से घंगारिया तक के लिए हेलिकॉप्टर सेवा शुरू की गई है।

रेल मार्ग
हेमकुंड साहिब का नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो गोविंदघाट से 273 किलोमीटर दूर है। ऋषिकेश से श्रद्धालु टैक्सी या बस के जरिए श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, चमोली और जोशीमठ होते हुए गोविंदघाट पहुंच सकते हैं। ऋषिकेश रेल मार्ग के जरिए देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग
ऋषिकेश से गोविंदघाट तक अच्छी सड़कें हैं और यहां तक वाहन से बड़े आराम से पहुंचा जा सकता है लेकिन इसके ऊपर यानी कि गोविंदघाट से घांघरिया तक की यात्रा 13 किलोमीटर की चढ़ाई करके पूरी करनी होती है जो एकदम खड़ी चढ़ाई है। इसके आगे का 6 किलोमीटर का सफर और भी ज्यादा मुश्किलों से भरा है। लेकिन यहां श्रद्धालु खच्चर, घोड़े और कुली की सेवा ले सकते हैं।