आरती करते समय भक्त का मन स्वच्छ होना चाहिये अर्थात उसे पूरे समर्पण के साथ आरती करनी चाहिये तभी उसे आरती का पुण्य प्राप्त होता है। माना जाता है कि भक्त इस समय अपने अंतर्मन से ईश्वर को पुकारते हैं इसलिये इसे पंचारती भी कहा जाता है।
श्री नरसिंह भगवान की आरती
आरती कीजै नरसिंह कुँवर की।
वेद विमल यश गाऊँ मेरे प्रभुजी॥
पहली आरती प्रह्लाद उबारे,
हिरणाकुश नख उदर विदारे।
दूसरी आरती वामन सेवा,
बलि के द्वार पधारे हरि देवा।
आरती कीजै नरसिंह कुँवर की।
तीसरी आरती ब्रह्म पधारे,
सहसबाहु के भुजा उखारे।
चौथी आरती असुर संहारे,
भक्त विभीषण लंक पधारे।
आरती कीजै नरसिंह कुँवर की।
पाँचवीं आरती कंस पछारे,
गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले।
तुलसी को पत्र कण्ठ मणि हीरा,
हरषि-निरखि गावें दास कबीरा।
आरती कीजै नरसिंह कुँवर की।
वेद विमल यश गाऊँ मेरे प्रभुजी॥

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