आरती करते समय भक्त का मन स्वच्छ होना चाहिये अर्थात उसे पूरे समर्पण के साथ आरती करनी चाहिये तभी उसे आरती का पुण्य प्राप्त होता है। माना जाता है कि भक्त इस समय अपने अंतर्मन से ईश्वर को पुकारते हैं इसलिये इसे पंचारती भी कहा जाता है।

शनिवार आरती

जय शनि देवा, जय शनि देवा, जय जय जय शनि देवा।
अखिल सृष्टि में कोटि-कोटि जन करें तुम्हारी सेवा।
जय शनि देवा, जय शनि देवा, जय जय जय शनि देवा॥

जा पर कुपित होउ तुम स्वामी, घोर कष्ट वह पावे।
धन वैभव और मान-कीर्ति, सब पलभर में मिट जावे।
राजा नल को लगी शनि दशा, राजपाट हर लेवा।
जय शनि देवा, जय शनि देवा, जय जय जय शनि देवा॥

जा पर प्रसन्न होउ तुम स्वामी, सकल सिद्धि वह पावे।
तुम्हारी कृपा रहे तो, उसको जग में कौन सतावे।
ताँबा, तेल और तिल से जो, करें भक्तजन सेवा।
जय शनि देवा, जय शनि देवा, जय जय जय शनि देवा॥

हर शनिवार तुम्हारी, जय-जय कार जगत में होवे।
कलियुग में शनिदेव महात्तम, दु:ख दरिद्रता धोवे।
करू आरती भक्ति भाव से भेंट चढ़ाऊं मेवा।
जय शनि देवा, जय शनि देवा, जय जय जय शनि देवा॥

आरती-2

चार भुजा तहि छाजै, गदा हस्त प्यारी।
जय शनिदेव जी॥
रवि नन्दन गज वन्दन, यम अग्रज देवा। कष्ट न सो नर पाते, करते तब सेवा॥
जय शनिदेव जी॥
तेज अपार तुम्हारा, स्वामी सहा नहीं जावे।
तुम से विमुख जगत में, सुख नहीं पावे॥
जय शनिदेव जी॥
नमो नमः रविनन्दन सब ग्रह सिरताजा।
बन्शीधर यश गावे रखियो प्रभु लाजा॥
जय शनिदेव जी॥

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