आरती करते समय भक्त का मन स्वच्छ होना चाहिये अर्थात उसे पूरे समर्पण के साथ आरती करनी चाहिये तभी उसे आरती का पुण्य प्राप्त होता है। माना जाता है कि भक्त इस समय अपने अंतर्मन से ईश्वर को पुकारते हैं इसलिये इसे पंचारती भी कहा जाता है।
सब मासों में उत्तम, तुमको बतलाया।
कृपा हुई जब हरि की, कृष्ण रूप पाया॥
जय पुरुषोत्तम देवा॥
पूजा तुमको जिसने सर्व सुक्ख दीना।
निर्मल करके काया, पाप छार कीना॥
जय पुरुषोत्तम देवा॥
मेधावी मुनि कन्या, महिमा जब जानी।
द्रोपदि नाम सती से, जग ने सन्मानी॥
जय पुरुषोत्तम देवा॥
विप्र सुदेव सेवा कर, मृत सुत पुनि पाया।
धाम हरि का पाया, यश जग में छाया॥
जय पुरुषोत्तम देवा॥
नृप दृढ़धन्वा पर जब, तुमने कृपा करी।
व्रतविधि नियम और पूजा, कीनी भक्ति भरी॥
जय पुरुषोत्तम देवा॥
शूद्र मणीग्रिव पापी, दीपदान किया।
निर्मल बुद्धि तुम करके, हरि धाम दिया॥
जय पुरुषोत्तम देवा॥
पुरुषोत्तम व्रत-पूजा हित चित से करते।
प्रभुदास भव नद से सहजही वे तरते॥
जय पुरुषोत्तम देवा॥