आरती करते समय भक्त का मन स्वच्छ होना चाहिये अर्थात उसे पूरे समर्पण के साथ आरती करनी चाहिये तभी उसे आरती का पुण्य प्राप्त होता है। माना जाता है कि भक्त इस समय अपने अंतर्मन से ईश्वर को पुकारते हैं इसलिये इसे पंचारती भी कहा जाता है।
जय वैष्णवी माता, मैया जय वैष्णवी माता।
हाथ जोड़ तेरे आगे, आरती मैं गाता॥
शीश पे छत्र विराजे, मूरतिया प्यारी।
गंगा बहती चरनन, ज्योति जगे न्यारी॥
ब्रह्मा वेद पढ़े नित द्वारे, शंकर ध्यान धरे।
सेवक चंवर डुलावत, नारद नृत्य करे॥
सुन्दर गुफा तुम्हारी, मन को अति भावे।
बार-बार देखन को, ऐ माँ मन चावे॥
पान सुपारी ध्वजा नारियल, भेंट पुष्प मेवा।
दास खड़े चरणों में, दर्शन दो देवा॥
जो जन निश्चय करके, द्वार तेरे आवे।
उसकी इच्छा पूरण, माता हो जावे॥
इतनी स्तुति निश-दिन, जो नर भी गावे।
कहते सेवक ध्यानू, सुख सम्पत्ति पावे॥